________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-८० तस्माद्बभूव भुवि भूरिगुरणोपपेतो, भूप- प्रभूतमुकुटाचित-पादपीठः / श्रीराष्ट्रकूटकुलकाननकल्पवृक्षः, श्रीमान्विदग्धनृपतिः प्रकटप्रतापः // 3 // उन हरिवर्मा के–महान् गुणों से सम्पन्न, राजाओं के मुकुटों से पूजित-चरण, राठौड़ वंश रूपी उपवन में कल्पव क्ष के समान प्रतापी श्रीमान् विदग्धराज हुए / / 3 / / तस्माद्भूपगरणा . . . . 'तमा कीर्तेः परं भाजनं, संभूतः सुतनुः सुतोतिमतिमान श्रीमम्मटो विश्रुतः / येनास्मिन्निजराजवंशगगने चन्द्रायितं चारुणा, तेनेदं पितृशासनं समधिकं कृत्वा पुनः पाल्यते // 4 // उस विदग्ध राजा के राजाओं से वन्दित कीति का परम पात्र मम्मट नाम का एक बुद्धिमान पुत्र उत्पन्न हुआ। ये मम्मट इस राठौड़ वंश के आकाश में चन्द्रमा के सदृश है / इन्होंने ही पिता की इस आज्ञा को और बढ़ाकर उसका पुनः पालन किया // 4 // श्री बलभद्राचार्या विदग्धनूपपूजितं समभ्यर्च्य / आ चन्द्रार्क यावदृतं भवते मया...॥५॥ विदग्धराज से पूजित श्री बलभद्राचार्य (वासुदेवसूरि) की अर्चना कर मैं (मम्मट) सूर्यचन्द्रस्थिति तक यह राजाज्ञा प्रदान करता हूँ / / 5 / /