________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-२६ इन्हीं परम प्रभावक वासुदेवाचार्य ने विदग्धराज को सदुपदेश देकर हस्तिकुण्डी में मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई। यशोभद्रसूरि ___ यशोभद्रसूरि का जन्म सिरोही जिले की पिंडवाड़ा तहसील में स्थित पलाई नामक गांव में 657 वि. में हुआ था। इनकी माता का नाम गुरासुन्दरी एवं पिता का नाम पुण्यसार था। इनके बचपन का नाम सुधर्मा था। नाडलाई (गोड़वाड़) की पश्चिम दिशा में स्थित ऋषभदेव भगवान के मन्दिर के रङ्गमण्डप में सं. 1567 विक्रमी के एक शिलालेख के अनुसार इनके पिता का नाम यशोवीर तथा माता का नाम सुभद्रा था। बचपन से ही ये बड़े मेधावी थे। श्री दीपविजयजी ने सं. 1877 में अपने सोहमकुलरत्नपट्टावलिरास में श्री यशोभद्रसूरि के जन्म के विषय में लिखा है : सांडेरागच्छ में हुमा जसोभद्रसूरिराय / नवसेंहें सत्तावन समें जनम वरस गछराय // 2 // उस समय संडेरकगच्छ के ईश्वरसूरि मुण्डारा में बदरी देवी की उपासना कर रहे थे। उनकी छह वर्ष की उपासना से प्रसन्न होकर देवी को प्रकट होना पड़ा। प्राचार्य महोदय ने उनसे एक सुशिष्य की प्राप्ति की इच्छा प्रकट की। देवो ने पलाई (पलासी) ग्राम के सुधर्मा को उनके शिष्यत्व के योग्य बताया। ईश्वरसरि अपने संघ के साथ पलाई ग्राम पधारे / वहाँ उन्होंने सुधर्मा के माता-पिता से सुधर्मा को मांगा। बहुत दुःख भरे हृदय से माता-पिता ने सुधर्मा को ईश्वरसूरिजी