________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-६८ जब यह धवल राजा विजययात्राओं के लिए प्रस्थान करता है तो चलते हुए घोड़ों के खुरों से खुदी पृथ्वी को धूल उड़कर आकाश को इस प्रकार आच्छादित कर देती है मानो इस राजा के पराक्रम और तेज से पराजित सूर्य भी लज्जित हो गया है / / 16 / / न कामनां मनो धीमान् ध.. लनां दधौ / अपूर्ण पंक्ति को इस प्रकार पूरा किया जा सकता हैन कामनां तनौ धीमान् ध (वल...ल)लनां दधौ / अनन्योद्धार्यसत्कार्यभारधुर्योऽर्थतोऽपि यः // 17 // वास्तव में, यह धवल राजा एक अनन्य उद्धारक एवं सत्कार्य के भार को वहन करने वाला है / स्त्रियों के विषय में यह किसी प्रकार की कामना नहीं रखता है अर्थात् सदाचारी एवं शीलवती है / / 17 / / यस्तेजोभिरहस्करः करुणया शौद्धोदनि शुद्धया, भीष्मो वचनवंचितेन वचसा धर्मेण धर्मात्मजः / प्राणेन प्रलयानिलो बलभिदो मंत्रेण मंत्री परो, रूपेण प्रमदाप्रियेण मदनो दानेन कर्णोऽभवत् // 18 // जो तेज में साक्षात् सूर्य है, विशुद्ध करुणा में साक्षात् बुद्ध है, भीष्म के समान दृढ़प्रतिज्ञ है, धर्म से धर्मराज युधिष्ठिर है, बल में प्रलयकाल की वायु के समान है, मंत्र में इन्द्र के दूसरे मंत्री के समान है, रूप से स्त्रीजनप्रिय कामदेव है एवं दान देने में कर्ण के ही समान है / / 18 / /