________________ शिलालेख-७७ विदग्धराज ने पुराने जमाने में जो तुलादि प्रभूत दान दिया, उस परम्परा का निर्मल बुद्धि धवल ने जो पालन किया वह अद्भुत नहीं है क्योंकि धवल ने तो स्वयं अपने पिप्पल नाम के कुए को जिनमन्दिर के लिए अर्पित किया है / / 38 // यावच्छेषशिरस्थमेकरजतस्थूणास्थिताम्युल्लसत्पातालातुलमंडपामलतुलामालंबते भूतलम् / तावत्ताररवाभिरामरमणी गंधर्वधोरध्वनिर्धामन्यत्र धिनोतु धार्मिकधियः सद्ध पवेला विधौ।३।। ___ जब तक चांदी के एक खम्भे पर आधारित अतुल मण्डप वाले पाताल की समता शेषनाग के सिर पर स्थित पृथ्वी करती रहेगी तब तक इस मन्दिर में आरती के समय तार स्वर से गाती हुई सुन्दर रमणियों की सङ्गीत धीर ध्वनि को धर्मबुद्धि सुनते रहें।,३६ / / सालंकारा समधिकरसां साधुसंधानबंधा, श्लाघ्यश्लेषा ललितविलसत्तद्धिताख्यातनामा / सद्वत्ताढ्या रुचिरविरतिधुर्यमाधुर्यवर्या, सूर्याचाय यंरचि रमणीवाति रम्या प्रशस्तिः // 40 // सूर्याचार्य द्वारा रचित यह प्रशस्ति रमणी के समान ही रमणीय है / जिस प्रकार रमणी आभूषणों से युक्त होती है जैसे ही यह प्रशस्ति भी उपमादि अलंकारों युक्त है / रमणी यदि सरस है तो यह भी शृङ्गारवीररसादि से युक्त है / रमणी यदि रमणीय आलिङ्गनवाली है तो इसमें भी प्रशंसनीय श्लेषादि अलङ्कार हैं। वह यदि मधुरभाषिणी है तो यह प्रशस्ति भी लालित्यपूर्ण शब्दों से शोभित है। रमणी यदि