________________ हस्ति कुण्डी का इतिहास-५६ आचार्य श्रीमद् विजयसमुद्रसूरीश्वरजी महाराज के कर-कमलों द्वारा सम्पन्न हुई थी। पास ही यह जो उपाश्रय है उसे बनवाने वाले हैं बीजापुरनिवासी शाह हंसराजजी नत्थूजी, फर्म चन्दुलाल खुशालचन्दजी, बम्बई। इसमें साधु-मुनिराजों के ठहरने का उत्तम प्रबन्ध है। बाईं तरफ आगे यह जो यात्री भवन बना हुआ है, इसे बनवाने में कई दानवीरों ने सहायता को है, उनके नाम इन पट्टियों पर लिखे हुए हैं। दाहिनी तरफ के राता महावीर (राष्ट्रकूट) वर्द्ध मान जैन यात्री-भवन को बनवाने में कई दानवोरों ने सहयोग किया है जिनके नाम वहाँ लिखे हुए हैं। मन्दिरजी की पेढ़ी इसी भवन में स्थित है। भोजनशाला एवं आयंबिल खाता भी इसी में चल रहा है। इन दोनों धर्मशालाओं में कमरों के लिए कई दानदाताओं ने योगदान किया है / ___ मुख्य मन्दिरजी के सामने यह जो छोटासा मन्दिर है यह महावीर यक्ष का है एवं बहुत पुराना है। इसे भी नया बनाकर ऊँचा लेने की योजना है। बस, अब मन्दिर का मुख्यद्वार आ गया। मुख्यद्वार के अन्दर ऊपर की तरफ ये जो खाली स्थान दिखाई देते हैं इन्हीं में वह 1053 वि. का प्रसिद्ध शिलालेख लगा हुआ था जिसे कैप्टेन बर्ट, प्रो. किलहोर्न व पं. रामकरण पासोपा उखड़वा कर ले गए। यह शिलालेख अब अजमेर के म्यूजियम में है एवं इसकी क्रम संख्या 258 है। राठौडों के इतिहास पर यह प्रामाणिक सामग्री प्रस्तुत करता है / इस मन्दिर में कुल 24 देवकुलिकाएँ हैं / द्वार के दोनों मोर 6-6 व आजू-बाजू में 6-6 / द्वार के दोनों ओर की इन 12 देवकुलिकाओं पर 12 शिखर हैं जो दूर से यात्रियों को