________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-२८ सांडेराव से प्राचार्यश्री चित्तौड़ पधारे। मेवाड़ में आघाट नगर के राजा के मंत्री ने एक जैन मन्दिर बनवाया था। आचार्यश्री ने उस मन्दिर में पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई। इसके बाद करेड़ा (करहेट), कविलाणक, संभरी (सांभर), भेसर आदि गाँवों में एक ही दिन प्रतिष्ठा करवा कर प्राचार्यश्री ने सबको चमत्कृत कर दिया। कविलाणक गाँव में प्रतिष्ठा के अवसर पर इतने अधिक लोग आए कि कुओं का पानी समाप्त हो गया तब श्रीसंघ की विनती पर आपने नख द्वारा एक कुत्रा खोदा एवं 65 कुत्रों में पानी भर दिया / . अद्यापि तत्र नखसूताख्यया कूपः प्रसिद्धोऽस्ति / (संस्कृतचरित्र 1683 विक्रमी) यह नखसूत नाम का कुआ आज भी मौजूद है / आहड़ के भद्रव्यवहारी श्रावक ने शत्रुञ्जय एवं गिरनार तीर्थ की यात्रार्थ संघ निकाला। इस संघ में यशोभद्रसूरिजी साथ थे। अन्हिलपुर पाटण में मूलराज सोलंकी ने यशोभद्रसूरिजी को पाटण में स्थिरवास करने की प्रार्थना की। आचार्यश्री को एक कमरे में ठहराया गया एवं यह सोचकर कि आचार्यश्री संघ के साथ नहीं जा सकें, राजा ने उस कमरे को बन्द करवा दिया। पर योगविद्या के बल पर प्राचार्य सूक्ष्म रूप धारण कर बाहर निकल गए एवं श्रीसंघ में सम्मिलित हो गए। रास्ते में पानी की कमी होने पर गुरु ने एक सूखे तालाब को पानी से लबालब भर दिया। उस सरोवर का नाम साधु सरोवर है।