________________ हस्तिकुण्डी का समाज-४३ समाज का चित्र उस काल के उपलब्ध साहित्य के आधार पर अंकित किया जा सकता है / हस्तिकुण्डी के ऐश्वर्य के गीत गाने वाला साहित्य तो उपलब्ध नहीं है परन्तु उस समय के शिलालेख तत्कालीन समाज-व्यवस्था पर अवश्य प्रकाश डालते हैं / हस्तिकुण्डी के शिलालेखों से राठौड़ों के धर्म, समाज, दानव्यवस्था, वाणिज्य, कृषि एवं कर-व्यवस्था के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है। संवत् 673 के राठौड़ों के शिलालेख संख्या 316 के प्रथम श्लोक के अनुसार राठौड़ विदग्धराज और उनके पुत्र मम्मट ने अपने आप को जैनधर्मावलम्बी बताया है। परवादिदर्पमथनं, हेतुनयसहस्रभङ्गकाकीर्णम् / भव्यजनदुरितशमनं, जिनेन्द्रवरशासनं जयति // अर्थात् भव्यजनों के पाप का शमन करने वाले जिनेन्द्र भगवान के शासन की जय हो / मम्मट का पुत्र धवल भो जैनधर्मानुयायी था / धवल के बाद भी राठौड़ों के सामूहिक रूप से जैनधम अङ्गीकार करने का वर्णन मिलता है। राठौड़ जगमाल और अनन्तसिंह के जैनधर्म अङ्गीकार करने के उल्लेख जैन-साहित्य में मिलते हैं। अनन्तसिंह ने वि. सं. 1208 में प्राचार्य जयसिंहसूरि के उपदेश से जैनधर्म स्वीकार किया था। राठौड़ों की जैनधर्माबलम्बी होने की परम्परा भले ही कायम न रह सकी हो पर हस्तिकुण्डी के संवत् 673, 676 व 1053 वि. के शिलालेख उनके अक्षय शासन के जैनधर्म प्रेमी होने के प्रमाण हैं। 1. श्री अंचलगच्छीय मोटी पट्टावली / 2. अनन्तसिंह के वंशज रातड़िया राठौड़ अथवा हथुण्डिया राठौड़ के नाम से आज भी प्रसिद्ध हैं।