Book Title: Hastikundi Ka Itihas
Author(s): Sohanlal Patni
Publisher: Ratamahavir Tirth Samiti

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Page 57
________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-४४ जैनधर्म उस काल में हस्तिकुण्डी नगरी एवं उसके द्वारा शासित प्रदेश का राजधर्म हो गया था। राज्याश्रय प्राप्त होने से प्रजा में भी इस धर्म के प्रति आस्था उत्पन्न हो गई थी। राष्ट्रकूट विदग्धराज ने हस्तिकुण्डी में एक विशाल जैन मन्दिर का निर्माण करवाया था। यह मन्दिर उत्तुंग शिखर वाला था ( श्लोक 6 ) / विदग्धराज अपनी दानशीलता के कारण अति प्रसिद्ध रहा है। वह अपने तुलादान के दो भाग देवताओं को और एक भाग गुरु को विद्या के लिए अर्पित करता था / देवताओं को दो भाग अपित करने का अर्थ है कि राठौड़ राजाओं ने कलाप्रेमी होने के कारण देवमन्दिरों के निर्माण के लिए एवं विभिन्न कलाओं को प्रोत्साहन देने के लिए काफी धन खर्च किया / एक भाग गुरु को दान करने का अर्थ है कि उन्होंने अपनी प्रजा की शिक्षा के लिए अथक प्रयास किया। ___ व्यापार एवं वस्तुओं के क्रय-विक्रय से प्राप्त आय की एक निश्चित राशि धर्मार्थ राजकोष में पहुँचती थी एवं इसी शुद्ध धन से सार्वजनिक निर्माण कार्य होते थे। सार्वजनिक सम्पत्ति की सुरक्षा का दायित्व राजा, राजकूमार और नागरिकों का होता था। गुरु तथा देवता के धन को खाने वाला महापापी माना जाता था। तत्कालीन व्यापार, वाणिज्य एवं कर-व्यवस्था का जितना सुन्दर स्पष्टीकरण हस्तिकुण्डी का शिलालेख सं. 316 संवत् 673 वि. करता है उतना अन्य राजवंशों के दानपत्रों में भी खुलासा नहीं मिलता। इस प्रकार की व्यवस्था से पूर्व मम्मटराज ने हस्तिकुण्डी के मन्दिर में एक विशाल प्रायोजन कर

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