________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-६ सिंहाजी ने बालीसा चौहानों को अपना सामन्त बना कर अपने राज्य को आगे बढ़ाने हेतु प्रस्थान किया / सिंहाजी के मारवाड़ आने का उल्लेख श्रीयुत विश्वेश्वरनाथजी रेउ ने अपनी पुस्तक ग्लोरीज प्रॉफ मारवाड़ एण्ड ग्लोरीज ऑफ राठौड़ में किया है। उन्होंने यह स्वीकार किया है कि हस्तिकुण्डी के राठौड़ों के मात्र चार नाम हरिवर्मा, विदग्धराज, मम्मट एवं धवलराज ही इतिहास में आलोकित होकर समाप्त हो जाते हैं। परन्तु हस्तिकूण्डी के शिलालेखों में एक पाँचवाँ नाम बालाप्रसाद का भी मिलता है / यह बालाप्रसाद धवलराज राठौड़ का पुत्र था। धवलराज का समय 1053 विक्रमी है। हस्तिकुण्डी के राठौड़ों की लूप्त कड़ी में एक छठा नाम दत्तवर्मा राठौड का भी है जिसने संवत् 1080 विक्रमी (सन् 1023 ई.) में नाडौल के रामपाल चौहान से मिल कर सोमनाथ जाते हुए महमूद गजनवी से युद्ध किया था। हस्तिकुण्डी के इन राठौड़ों की लुप्त कड़ी बालीसा चौहानों को बड़ों की बही से जुड़ जाती है जहाँ हमें एक सातवाँ नाम सींगा कमधज का (सिंहाजी राठौड़) मिलता है। शायद रेउजी कन्नौज के राष्ट्रकूटों की गौरवपूर्ण परम्परा से मारवाड़ के शासकों को जोड़ने के लिए सिंहाजी को राठौड़ वरदाई सेन (हरिश्चन्द्र का पुत्र) बता कर उन्हें मारवाड़ लाये / परन्तु ये सिंहाजी हस्तिकुण्डी के राठौड़ों की परम्परा के थे न कि कन्नौज के। पाली कन्नौज से नहीं किन्त हस्तिकूण्डी से नजदीक पड़ती है। पाली में सिंहाजी की वीरता की धाक पहले ही पहुंच चुकी थी इसलिए जर्जर शासन से त्रस्त पाली की जनता ने उनका स्वागत किया और बिना युद्ध के पाली पर सिंहाजी का अधिकार हो गया। इस सम्बन्ध में एक पुराना दोहा प्रसिद्ध है :