________________ हस्ति कुण्डी एक परिचय-७ पाटो खाधो ईलिए, घर खांधा गोले / पाली गई प्रेम सू, बाजतां ढोले / अर्थात् ईलिया-ईली (गेहूं का कीड़ा) जिस प्रकार अन्दर ही अन्दर गेह के तत्त्व - आटे को खा जाती है, वैसे ही पाली के राजघराने की शक्ति को चाटुकारों ने समाप्त कर दिया एवं पाली बिना किसी विरोध के ढोल-ढमाके के स्वागत के साथ प्रेम से विजेता के अधिकार में चली गयी। यदि इस तथ्य पर खोज हो तो हस्तिकुण्डी को मारवाड़ का वीर वंश देने का गौरव प्राप्त हो जायेगा / वरसिंह चौहान, सिंहाजी के सामन्त थे। इस समय तक सिंहाजी एक बड़े इलाके के स्वामी बन गये थे एवां उनकी वीरता की धाक जम गई थी। वरसिंह चौहान के समय से यह प्रदेश बेड़ा के परगने में सम्मिलित हो गया था। इसकी पुष्टि हस्तिकूण्डी के शिलालेख संख्या 322 से होती है जो सं. 1346 विक्रमी का है। इसमें बेड़ा के राव कर्मसिंह का उल्लेख है जो शायद वरसिंह के वंशज होंगे। ये कर्मसिंह मेवाड़ के सिसोदिया राणा रु मह व उनके पुत्र लाखा से लड़े थे। बाद में वे मुसलमानों से युद्ध करते हुए मारे गये। वरसिह चौहान के समय से यह प्रदेश चौहानों द्वारा शासित हो गया था। वरसिंह के पुत्र रामसिंह ने महमूद नाम के एक शासक को पराजित कर 'सींगारा चौहान' का विरुद प्राप्त किया था। रामसिंह के पुत्र रूपसिंह, उदयसिंह आदि शासकों ने इस प्रदेश पर राज्य किया / उदयसिंहजी के समय में मुञ्जसिंह चौहान (मुजा बालिया) इस प्रदेश के वीर पुरुष