________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-१६ मूलनायक को विराजमान करने वाले श्रावक नाहक, जिंद, जश, शंप, पूरभद्र एवं नाग आदि थे। 1053 विक्रमी में पुनः जीर्णोद्धार हुअा एवं पुनः प्रतिष्ठा की गई। यह पुनः प्रतिष्ठा भी ऋषभदेव भगवान की मूर्ति की ही थी। इससे पूर्व यह महावीर भगवान का मन्दिर था जो बहुत जीर्ण हो गया था। विदग्धनृपकारिते जिनगुहेऽतिजीपणे शान्त्याचा स्त्रिपंचाशे सहस्त्रे शारदामियं (1053) माघशुक्लत्रयोदश्यां सुप्रतिष्ठैः प्रतष्ठिता // शिलालेख सं० 318, 1053 विक्रमी विदग्धराज द्वारा प्रतिष्ठित जिनमन्दिर के प्रति जीर्ण होने पर 1053 विक्रमी में शान्त्याचार्य नाम के प्राचार्य ने माघ सुदी 13 को इसकी प्रतिष्ठा की / जीर्णोद्धार करवाने वाले ये प्राचार्य हस्तिकुण्डीगच्छ के वासुदेवसूरि (बलिभद्र सूरि) के शिष्य अथवा प्रशिष्य थे / 696 विक्रमी का शिलालेख वस्तुतः 666 विक्रमी को श्री मम्मट की एवं 973 विक्रमी की श्री विदग्धराज की राजाज्ञाएँ ही हैं जिन्हें प्रतिष्ठा के समकालीन धवल ने अपने पूर्वजों को याद करने एवं मन्दिर के संभरण हेतु पुनः नवीनीकृत कर 1053 विक्रमी में नये सिरे से खुदवाया / विक्रमी सं. 673 के पहले यह मन्दिर महावीर भगवान का ही था पर बहुत से इतिहासकार ज्ञानसुन्दरजी महाराज की इस बात को इतिहाससम्मत नहीं मानते; किंवदन्तियों पर आधृत मानते हैं। मैं यह निर्विवाद कहता हूँ कि किंवदन्तियों की कोख से भी इतिहास के कीमती तथ्य निकले हैं एवं जनश्रुतियों ने इतिहास के निर्माण में बराबर योग दिया है /