Book Title: Hastikundi Ka Itihas
Author(s): Sohanlal Patni
Publisher: Ratamahavir Tirth Samiti

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Page 29
________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-१८ _____ लावण्यसमयजी एवं शीलविजयजी आदि प्राचार्यों की तीर्थमालाएं किसी सुदृढ़ आधार पर लिखी गई हैं। मेरी यह मान्यता है कि १२वीं सदी के बाद इस आदिनाथ मन्दिर में पुनः महावीर भगवान की लाल वर्ण की प्रतिमा प्रतिष्ठित कर दी गई होगी। मूर्ति को बदलने के कई कारण हो सकते हैं। राष्ट्रकूटों को निरन्तर आक्रमणकारियों से लड़ना पड़ा एवं इन लड़ाइयों में नगरी टूट गई / नगरी के साथ मन्दिर की रक्षा भी कठिन हो गई होगी / इसलिए प्रतिमा को यहाँ से हटा दिया होगा। __यहाँ यह लिखना अप्रासंगिक नहीं होगा कि सं. 1325 की फाल्गुन सुदी 8, गुरुवार को वासुदेवाचार्य द्वारा प्रतिष्ठित ऋषभदेव भगवान की एक मूर्ति उदयपुर के निकट बाबेला के मन्दिर में प्रतिष्ठित की गई है। ये वासुदेवाचार्य हस्तिकुण्डीगच्छ के ही हैं। मेरे मत से किसी कारण इन्हीं गच्छपति वासुदेवाचार्य द्वारा प्रतिष्ठित ऋषभदेव भगवान की प्रतिमा को बाबेला में प्रतिष्ठित किया गया एवं हस्तिकुण्डी में महावीर भगवान की रक्त वर्ण की मूर्ति को पुनः स्थापना की गई होगी। यह मूर्ति बाबेला के मन्दिर में आज भी मौजूद है। उसके बाद के सं. 1335 वि. के शिलालेख में इस मन्दिर के लिए रातामहावीरजी के नाम का उल्लेख हुआ है। यह मान्यता निराधार है कि सं. 1053 में किसी अन्य मन्दिर से ऋषभदेव भगवान की मूर्ति इस मन्दिर में प्रतिष्ठित कर दी गई हो। यह मूर्ति नयी ही स्थापित की गई थी एवं पुन: महावीर की इस मूर्ति की स्थापना करने के लिए इसे बाबेला भेज दिया गया। मंदिरों के मूल नायक बदलने की प्रथा आज भी जैनों में प्रचलित है।

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