________________ हस्तिकुण्डी एक परिचय-६ ड़ियाँ एवं सोलह सौ पणिहारियाँ-यह उल्लेख चौदहवीं शताब्दी का है। यह प्राचीन नगरी और उसका वैभव दोनों ही आज दिखाई नहीं देते पर संगमरमर की आठ बावड़ियाँ मन्दिर के कोटद्वार के बाहर आधी भूमिगत एवं आधी बाहर आज भी दिखाई देती हैं। मन्दिर के आसपास भूमि पर अब खेती प्रारम्भ हो गई है एवं पुराने अवशेषों को या तो दबा दिया गया है अथवा उखाड़ कर फेंक दिया गया है पर पंचतीर्थेश्वर महादेव का विशाल मन्दिर आज भी खण्डहर के रूप में खड़ा है जिसके पारस के पत्थर काल की क्रूरता से काले पड़ गये हैं। अरक्षितता के कारण लोग यहाँ की सामग्री उठा कर ले गये हैं / इसमें केवल एक शिलालेख दरवाजे की चौखट पर है जो पढ़ने में नहीं आता / समूचे क्षेत्र में खण्डहर ही खण्डहर दिखाई देते हैं। 1]xl फुट की 3 इंच मोटी विशाल ईंटें एवं स्थान-स्थान पर पत्थरों की चौड़ी नीने नगरी की विशालता का परिचय देती हैं। मन्दिर के आस-पास के क्षेत्र में जब भी कोई खुदाई होती है तो मूर्तियाँ और उनके अवशेष धरती के गर्भ से झांकते दिखाई देते हैं / पहाड़ी पर थोड़ी ऊंचाई पर स्थित दुर्ग एव महलों के खण्डहर हैं, जिनकी दीवारें खड़ी मूक रुदन करती हैं / बरसात में बहते रहने वाले पहाड़ी झरनों ने बहुत से अवशेषों को मिटा दिया है या बहा कर नदो में फेंक दिया है जिन्हें कलाप्रेमी उठा कर ले गये हैं। राष्ट्रकूटों के पैभव, उनकी राज्य-व्यवस्था, कर-निर्धारण एव अर्थसम्पदा की गाथा कहने वाला मन्दिर का वह शिलालेख है जो अजमेर के म्यूजियम में पड़ा हुआ है। भारत सरकार के पुरातत्त्व विभाग को इस क्षेत्र में नगरी के अवशेषों की खुदाई करवानी चाहिए ताकि परमारों को ध्वस्त नगरी चन्द्रावती के नैभव की तरह राठौड़ों की इस नगरी का भव भी उजागर हो सके। .