Book Title: Hastikundi Ka Itihas
Author(s): Sohanlal Patni
Publisher: Ratamahavir Tirth Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-१२ विटग्धनृपकारिते जिनगृहेऽतिजीणे, पुनः समं कृतसमुद्ध ताविह भवां (बु) धिरांत्मनः / अतिष्ठिपत् सोऽप्यथ प्रथमतीर्थनाथाकृति, स्वकोतिमिब मूर्ततामुपगतां सितांशुद्ध तिम् // 36 // विदग्ध राजा के द्वारा निर्मित जिनमन्दिर के प्रति जीर्ण होने पर संसार-सागर से अपने उद्धार के लिये धवल ने भी अपनी कीति को उजागर करने हेतु चन्द्र सदृश निर्मल किरणों वाली प्रथम तीर्थनाथ भगवान आदिनाथ की मूर्ति की स्थापना की। (अतिष्ठिपत्) यह तो हुई 1053 वि. की बात / अब 673 विक्रमी की बात करें / 1053 वि. में तो निश्चित रूप से इस मन्दिर में ऋषभदेव भगवान की मूर्ति की मूलनायक के रूप में प्रतिष्ठा हई थी पर 673 विक्रमी में मूलनायक कौन थे? इस विषय पर प्रकाश डालने वाला 33 वां श्लोक इस प्रकार है तदीय वचनानिज धनकलत्रपुत्रादिकं, विलोक्य सकलं चलं दलमिवानिलांदोलितम् / गरिष्ठ्यगुणगोष्ठयदः समुददीधरद्धीरधीरुदारमतिसुन्दरं प्रथमतीर्थकृन्मन्दिरम् // 33 // शि. सं.३१८ उक्त श्लोक से दो बातों पर प्रकाश पड़ता है, प्रथम तो यह श्लोक उन इतिहासकारों की मान्यता को चुनौती देता है जो यह कहते हैं कि मन्दिर विदग्धराज ने 673 वि. में बनवाया / श्लोक कहता है कि उसका जीर्णोद्धार हुआ और मूलनायक ऋषभदेव भगवान ही थे अर्थात् वासुदेवाचार्य ने जिस

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134