Book Title: Hastikundi Ka Itihas
Author(s): Sohanlal Patni
Publisher: Ratamahavir Tirth Samiti

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Page 20
________________ हस्तिकुण्डी की ऐतिहासिक सामग्री-११ शिलालेख की 22 पंक्तियों के नीचे 10 पंक्तियों का 666 इस शिलाखण्ड पर कुल 32 पंक्तियां उत्कीर्ण हैं जो नागरीलिपि में हैं। 22 वीं और 23 वीं पंक्तियों के थोड़े से भाग के अतिरिक्त दोनों लेख संस्कृत भाषा में हैं। पहला लेख 40 पद्यों में पूरा हुआ है और दूसरा लेख 21 श्लोकों में है / काल की अधिकता एवं अरक्षितता के कारण लेख के बहुत से अक्षर घिस गए हैं। प्रश्न यह उठता है कि 1053 विक्रमी का शिलालेख पहले व 666 विक्रमी का शिलालेख बाद में क्यों लिखा गया? मान्यता यह रही है कि शायद दूसरा लेख किसी दूसरे शिलाखण्ड पर रहा होगा पर 1053 विक्रमी के शिलालेख के समय तक जीर्ण होने या टूट-फूट जाने के कारण उसे भी इसी के साथ उत्कीर्ण कर दिया गया होगा, ऐसा आज भी मन्दिरों के जीर्णोद्वार के समय होता है / इन दोनों का पद्यानुवाद तो बाद में प्रस्तुत होगा पर पहले इन दोनों में उल्लिखित परस्पर विरोधी कथनों पर विचार कर लें। वि. सं. 1053 के शिलालेख में इस मन्दिर को भगवान ऋषभदेव का मन्दिर बताया गया हैसंवत् 1053 माघ शुक्ल 13 रविदिने पुष्यनक्षत्रे श्रीऋषभनाथदेवस्य प्रतिष्ठा कृता महाध्वजश्च रोपितः / अर्थात्-संवन् 1053 माघ सुदी 13 रविवार को पुष्यनक्षत्र में श्री ऋषभनाथदेव की प्रतिष्ठा की एवं महाध्वज का आरोपण किया। . इसी शिलालेख के ३६वें श्लोक से मन्दिर के मूलनायक के प्रश्न पर कुछ प्रकाश पड़ता है

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