Book Title: Hastikundi Ka Itihas
Author(s): Sohanlal Patni
Publisher: Ratamahavir Tirth Samiti

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Page 11
________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-२ होगी जिसके कारण इसका नाम हस्तिकुण्डी रख दिया गया होगा। शायद हस्तिसेना के बल पर ही यहाँ के राठौड़ दूर-दूर तक मार करते थे। हस्तितुण्डी का अर्थ है हाथी का मुख / हयूडी के राता महावीरजी की प्रतिमा के नीचे जो सिंह का लांछन अंकित है उसका मुख हाथी का है। शायद यही विशेषता इस नगरी की प्रसिद्धि का कारण रही हो और इसका नाम हस्तितुण्डी पड़ा हो / ' अरावली की उपत्यका में स्थित यह हस्तिकुण्डी राणकपुर से केवल 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की परम्परा का इतिहास (पूर्वार्द्ध) में इतिहासविद् मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज ने पृष्ठ 806 पर लिखा है कि विक्रमी संवत् 360 में श्री पार्श्वनाथ भगवान के ३०वें पाट पर प्राचार्य श्री सिद्धसूरि प्रतिष्ठित हुए / प्राचार्यदेव के सदुपदेश से श्रेष्ठी गोत्र के वीरदेव ने महावीर भगवान का एक भव्य जिनालय निर्मित करवाया एवं आचार्यदेव ने उसकी प्रतिष्ठा की। भगवान पार्श्वनाथ का समय 817 ई. पू. माना जाता है / उनको पाट-परम्परा में ३०वें आचार्य लगभग इसी समय हुए होंगे। तब यह प्रदेश मालव गणराज्य के अन्तर्गत था। कुषाण साम्राज्य के पतन के काल में यह मालव गणराज्य अजमेर से चित्तौड़ तक फैला हुआ था। समुद्रगुप्त को बढ़ती हुई शक्ति से भयभीत होकर इस गण ने गुप्तों की अधीनता स्वीकार कर ली थी। स्कन्दगुप्त के पश्चात् हूणों से युद्ध के कारण गुप्तों की शक्ति का ह्रास हो गया एवं इन 1. राठौड़ों की सेना की अग्रपंक्ति में हाथी रहते थे। सेना का यह अंग इन्हें बहुत प्रिय था।

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