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|| नहीं मिला है। यह भव तो भव का अभाव करने के लिए मिला है। मैं तो प्राप्त पर्याय में अटक कर, सन्मार्ग
| से भटक कर यह भूल ही गया था। यह तो बहुत अच्छा हुआ कि सही बात सही समय पर समझ में आ रि | गई। अन्यथा शादी-ब्याह के बन्धन में बंध कर संसार के दल-दल में फंस ही जाता।"
| बुजुर्ग बारातियों ने उन्हें समझाने का बहुत प्रयत्न किया; पर उन्होंने किसी की नहीं सुनी और बारात | वापिस हो गई।
जिनको भली होनहार से जब आत्मकल्याण करने का सुअवसर प्राप्त हो जाता है तो फिर वह ऐसा मंगलमय अवसर कैसे चूक सकता है। नेमिकुमार ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब वे गृहस्थ जीवन के दलदल में नहीं फसेंगे। अबतक जो विवाह नेमिकुमार को मांगलिक (सुखद) लग रहा था, वही विवाह अब उन्हें दुःखद दिखने लगा।
जब इस बात की खबर राजुल तक पहुँची तो प्रथम तो उसे क्षणिक आश्चर्य हुआ, परन्तु वह भी विवेकवान विराग प्रकृति की धर्मात्मा नारी थी, तत्काल संभल गई। उसे भी जो शादी रागवश मांगलिक लग रही थी, सुखद लग रही थी; वही दुःखद लगने लगी। अत: स्वयं को संभाल कर उसने भी नेमिकुमार की भांति ही आत्मसाधना के लिए अपना मानस बना लिया। ___ शादी के राग-रंग का वातावरण गंभीरता में बदल गया, नेमिकुमार और राजुल तो जिनदीक्षा || लेकर तपश्चरण हेतु गिरनार की ओर चले गये और भी अनेक राजाओं ने आत्मकल्याण करने का मानस बना लिया।
राजीमती (राजुल) कथाप्रसंग में नेमिकुमार के साथ उनके विवाह की जो रूपरेखा अंकित हुई है, उसमें ब्याहने आई बारात के लौटने की बात को लेकर रागी जीवों को राजमती पर दया आती प्रतीत होती है। प्राय: सभी कथाकार राजमती के चरित्र को इसीप्रकार चित्रित करते हैं कि - "बेचारी राजमती रोतीबिलखती रह गई और निर्दयी नेमिकुमार बारात वापिस लेकर राजा उग्रसेन के दरवाजे से लौट गये। बहुत बुरा हुआ......"
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