Book Title: Harivanshkatha
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 295
________________ । अभिमत • बीसवी शताब्दी के मनीषी विद्वान पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल की यह कृति आचार्य जिनसेन द्वारा रचित हरिवंशपुराण की विशालता को सरल-सुबोध शैली में संक्षिप्त एवं सारगर्भित बनाने का अनुपम प्रयास है। हरिवंश कथा' शीर्षक को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो यह कोई कथा कहानी मात्र होगी; किन्तु जब इसे पढ़ा तो इसमें निरूपित वस्तु-स्वतंत्रता, पाँच समवाय, छह द्रव्य, सामान्यगुण, सात तत्त्व आदि की चर्चा को देखकर अवाक रह गया। प्रथमानुयोग का ग्रन्थ होते हुए भी इसमें प्रसंगानुसार पात्रों को मोक्षमार्ग में लगाने के लिये मुनिराजों एवं गणधरों द्वारा जो वैराग्यप्रेरक, सैद्धान्तिक एवं आध्यात्मिक उपदेश दिया है, वह अपने आप में अद्भुत है। प्रस्तुत कृति में तीर्थंकर नेमिनाथ, श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव, श्रीकृष्ण तथा उनके पुत्र प्रद्युम्नकुमार, भानुकुमार, शंभुकुमार के साथ-साथ कौरवों पाण्डवों के प्रेरणादायक प्रसंगों का जीवन्त चित्रण किया गया है। श्रीकृष्ण की मृत्यु के पश्चात् बलदेव का करुण विलाप पढ़कर अपनी अश्रुधारा को रोकना कठिन लगता है। जहाँ नेमिनाथ के वैराग्य का प्रसंग हृदय में संसार, शरीर एवं भोगों से उदासीनता दिलाता है, वहीं राजुल का आदर्श जीवन, उसका वैराग्य एवं सतीत्व भी हृदय पर अमिट छाप छोड़ता है। प्रस्तुत कृति में लेखक की आत्मविशुद्धि की भावना तो प्रमुख रही ही है; साथ ही अनेक स्थानों पर नैतिक एवं सदाचार प्रेरक प्रसंगों से जनकल्याण एवं समाज सुधार की भावना भी मुखरित होती है, जो सामान्य पाठक के जीवन को बदलने में समर्थ है। लेखक द्वारा इसे इसतरह से अपनी लेखनी द्वारा बांधा गया है कि इसे पढ़नेवाला कैसे भी क्षयोपशमवाला हो; अवश्य ही लाभान्वित होगा। - संजीवकुमार जैन गोधा, एम.ए. प्रबन्ध सम्पादक, जैनपथप्रदर्शक (पाक्षिक), वीतराग-विज्ञान (मासिक), जयपुर • पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल बहुत सुन्दर लिख रहे हैं। उनकी प्रत्येक कृति घर-घर में खूब ध्यानपूर्वक पढ़ी जाती है। पूजन विषयक जिनपूजन रहस्य, समाधि विषयक विदाई की बेला, सदाचार प्रेरक संस्कार एवं सामान्य श्रावकाचार और णमोकार महामंत्र आदि सभी कृतियाँ बेजोड़ हैं। इनमें विदाई की बेला और इन भावों का फल क्या होगा ने मुझे बहुत प्रभावित किया। वैसे तो आपकी जितनी भी रचनायें हैं, मैंने सभी रुचि से पढ़ी हैं और सभी ने मुझे किसी न किसी रूप में प्रभावित किया है। - स्व. पण्डित हीरालाल जैन 'कौशल', दिल्ली (भू.पू.मंत्री - श्री अ.भा.दि.जैन विद्वत्परिषद् ) • सिद्धान्तसूरि श्रद्धेय पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल - आपको प्राप्त आचार्य अमृतचन्द्र पुरस्कार की खबर जानकर आपके प्रति श्रद्धा द्विगुणित हो गई। सचमुच आप सरल, सात्विक एवं जिनवाणी माता के प्रचार में निरत व्यस्त रहनेवाले विद्वानों में विरल हैं। आप सही रूप में जिनवाणी माँ की सरल, सुबोध शैली में गहन से गहन विषयों को प्रतिपादित करके जिज्ञासु भव्यजनों को सुबोध देने में सक्षम हैं। आपकी छवि को देखकर ही आपके प्रति श्रद्धा उमड़ पड़ती है। आप चिरायु होकर इसी तरह लंबे समय तक जिनवाणी की संवर्धना में सहयोगी बने रहें। - जयचन्दलाल पाटनी, गोहाटी 4

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