Book Title: Harivanshkatha
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 293
________________ । जब भगवान महावीर का जन्मोत्सव हो रहा था, तब यह कुण्डलपुर आया था और राजा सिद्धार्थ ने || इस परम-मित्र का अच्छा सत्कार किया। इसकी यशोदा नाम की पुत्री थी, वह भगवान महावीर के साथ यशोदा का विवाह करने का अभिप्राय रखता था; परन्तु स्वयम्भू भगवान महावीर तप के लिए चले गये और केवलज्ञान प्राप्त कर जगत का कल्याण करने के लिए पृथ्वी पर विहार करने लगे। तब जितशत्रु स्वयं | भी संसार से विरक्त हो मुनिधर्म धारण कर तप में लीन हो गये और जितशत्रु ने भी केवलज्ञान प्राप्त कर अपनी मनुष्यपर्याय सार्थक कर ली। इसप्रकार दसवें तीर्थंकर के तीर्थकाल से हरिवंश की उत्पत्ति हुई और पार्श्वनाथ के तीर्थ तक यह परम्परा अक्षुण्णरूप से चलती रही। इस वंश में सहस्रों जीवों ने आत्मसाधना का अपूर्व पुरुषार्थ करके मुक्ति प्राप्त की एवं अनेकों ने स्वर्ग के श्रेष्ठ पद प्राप्त किये। सभी जीव हरिवंश कथा को पढ़कर इससे मोक्षमार्ग की प्रेरणा लेकर अपना मनुष्यभव सार्थक करें - यही मंगल कामना है। शुभं भूयात् । छ Ev_of मैं एक शाश्वत सत्य हूँ, ध्रुव-धाम हूँ चैतन्यमय। मैं हूँ अनादि-अनंत जब, तब क्यों सतावे मृत्यु भय ।। बोधि-समाधि द्वार है, निजरूप पाने की कला। सन्यास और समाधि है, जीना सिखाने की कला ।। - विदाई की बेला, पृष्ठ-११४, हिन्दी संस्करण १० वाँ v485

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