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| सौन्दर्यवान एवं गन्धर्व विद्या में अति निपुण है। उसने यह नियम किया है कि जो मुझे गंधर्व शास्त्र अर्थात् संगीतशास्त्र में जीतेगा, वही मेरा पति होगा । बस उसी को जीतने के प्रयोजन से ये लोग नाना रदेशों से आये हैं । रूप- लावण्य और मृगनेत्री मनोहर कन्या ने समस्त संसार को व्यामोहित कर रखा वं है। अब तक अनेक प्रतियोगितायें हो चुकी हैं, उन सभी में उसी कन्या की विजय हुई। यह जानकर श वसुदेव ने यह खोज की कि इस ग्राम में संगीत विद्या में निपुण कौन है ? जानकारी मिली कि इस समय सुग्रीव संगीत का सबसे अधिक प्रसिद्ध विद्वान है ।
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वसुदेव सुग्रीव के पास गये और नमस्कार कर बोले - “मैं गौतम गोत्री हूँ, आपको अपना संगीत | विद्या का गुरु बनाना चाहता हूँ, कृपया मुझे अपना शिष्य बनाकर कृतार्थ करें ।”
सुग्रीव ने योग्य पात्र जानकर उसे संगीत विद्या सिखाने की स्वीकृति दे दी । व्युत्पन्न होने से अल्पकाल में ही वसुदेव सम्पूर्ण विद्या में पारंगत हो गया तथा अवसर आने पर वह भी गंधर्वसेना की संगीत प्रतियोगिता में सम्मिलित हुआ । क्रम आने पर वसुदेव वीणा बजाने हेतु आसन पर आसीन हुआ । वसुदेव को अनेक वीणायें दी गईं, पर वसुदेव ने उन सबमें कोई न कोई दोष दिखाकर उन्हें निरस्त कर दिया। अन्त में गंधर्वसेना ने अपनी सत्तरह तारों वाली सुधोषणा नाम की वीणा उन्हें दी। उसे | बजाकर प्रसन्न होते हुए वे बोले कि “यह वीणा बहुत अच्छी है, निर्दोष है। हे गन्धर्वसेना ! बोलो तुम्हें की | कौन-सी गदाध्वनि पसन्द है ? जो तुम कहो, मैं वही बजा दूँगा।"
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गंधर्वसेना ने कहा - "बलि को बांधते समय देवदूत नारद आदि ने विष्णुकुमार मुनि का जिस रूप में स्तवन किया था, वीणा से जो संगीत सुनाया था, आप वही गीत गायें, वैसा ही संगीत सुनायें।" वसुदेव ने गंधर्वसेना के कहे अनुसार विषयवस्तु प्रस्तुत करने से पूर्व प्रथम तो सम्पूर्ण संगीत विद्याओं | का विशद वर्णन कर सम्पूर्ण सभासदों को भाव-विभोर कर दिया, तत्पश्चात् गंधर्व शास्त्र के विस्तार | के साथ जब वसुदेव ने यथायोग्य अवसर के अनुकूल गाना गाया तो सभी श्रोता आश्चर्यचकित रह
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