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| है। इस कारण यह मेरे अधिकार की बात नहीं है। हे भगवन् ! आप स्वयं ही इस उपसर्ग से साधुओं को
| बचाने का जो भी उपाय कर सकते हों, वह उपाय अवश्य करें। आपके प्रभाव एवं चातुर्य से बलि अवश्य रि ही आपकी बात स्वीकार करेगा।
राजा द्वारा असमर्थता व्यक्त करने पर मुनि विष्णुकुमार वेष बदलकर वामन के रूप में स्वयं बलि के पास गये और बलि से कहा - हे भले आदमी तुम अधर्म को बढ़ानेवाला यह निन्दित कार्य क्यों कर रहे हो? मात्र तप में ही लीन रहने वाले इन मुनियों ने तुम्हारा ऐसा क्या अनिष्ट कर दिया? जिससे तुमने उच्च होकर भी नीच की तरह यह कुकृत्य किया? यदि शान्ति चाहते हो तो शीघ्र ही इस उपसर्ग का निवारण करो।
बलि ने कहा - यदि ये मेरे राज्य से चले जाएँ तो ही उपसर्ग दूर हो सकता है, अन्यथा नहीं।
विष्णुकुमार मुनि ने कहा - ये सब ध्यानस्थ हैं, इसकारण ये बिना उपसर्ग हटाये एक पग (डग) भी नहीं चल सकते। ये - अपने शरीर का त्याग भले ही कर देंगे, पर अपने ध्यान को नहीं तोड़ सकते, अपने धर्म का उल्लंघन नहीं कर सकते, अतः इन्हें ठहरने के लिए तुम मुझे मात्र तीन डग (पग) भूमि देना स्वीकार करो! मैंने अभी तक किसी से कभी कोई याचना नहीं की, फिर भी इन मुनियों के निमित्त मैं तुमसे थोड़ी सी भूमि की याचना करता हूँ।
मुनि विष्णुकुमार की बात को सशर्त स्वीकृत करते हुए बलि ने कहा कि “यदि ये उस सीमा के बाहर एक डग का भी उल्लंघन करेंगे तो दण्डनीय होंगे, फिर इसमें मुझे दोष मत देना; क्योंकि लोक में मनुष्य तभी आपत्ति में पड़ता है जब वह अपने वचन से च्युत होता है।"
इसके बाद उस दुष्ट बलि को वश करने के लिए विष्णुकुमार मुनि ने विक्रियाऋद्धि से अपने शरीर को इतना बड़ा बना लिया कि वह ज्योतिषपटल को छूने लगा। फिर उन्होंने एक डग सुमेरु पर्वत पर रखी, दूसरी डग मानुषोत्तर पर्वत पर और तीसरी डग के लिए अवकाश न मिलने से आकाश में ही घूमती रही। उस समय मुनि विष्णुकुमार के प्रभाव से तीनों लोकों में क्षोभ मच गया। देवगण आश्चर्यचकित होकर 'यह क्या'