Book Title: Harivanshkatha
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 236
________________ | नहीं हुई। अत: उसे क्रोध आ गया और यादवों से सन्धि करने के वह विरुद्ध हो गया और मंत्रियों से पूछने लगा - "अभी तक ये यादव उपेक्षित कैसे रह गये ? इन पर आक्रमण क्यों नहीं किया ? गुप्तचर और मंत्री ही तो राजा के नेत्र होते हैं; फिर सामने रहकर आप लोगों ने हमें यादवों की शक्ति और उनसे युद्ध न करने के कारणों से अनजान क्यों रखा ? यदि मैं अपने ऐश्वर्य में मत्त रहने के कारण उन्हें नहीं देख पाया | तो आप लोगों से वे अदृष्ट कैसे रह गये ?" जरासंध ने आगे कहा - | “यदि शत्रु उत्पन्न होते ही नष्ट नहीं कर दिये जाते तो कुपित बीमारी की भांति दुःखद हो जाते हैं, जिनका | परिणाम अच्छा नहीं होता। ये दुष्ट यादव मेरे जमाई कंस और भाई अपराजित को मारकर द्वारिका में निर्भयता से कैसे रह रहे हैं ? तीव्र अपराध करनेवाले वे लोग साम-दाम के स्थान नहीं, बल्कि भेद और दण्ड के ही पात्र हैं। इन्हें इसी कोटि में रखिये।" मंत्रियों ने विनम्रता से जरासंध के क्रोध को शान्त करते हुए कहा - "हे नाथ ! हम लोग शत्रुओं की द्वारिका में होनेवाली महावृद्धि को जानते हुए भी समय व्यतीत करते रहे; क्योंकि यादवों के वंश में उत्पन्न नेमिकुमार तीर्थंकर जो जन्म से अतुल्यबल के धनी हैं। श्रीकृष्ण और बलदेव भी इतने बलवान हैं कि मनुष्य तो क्या ? देवों द्वारा भी उन्हें जीतना कठिन है ?" ___मंत्रियों ने आगे कहा – “स्वर्गावतार के समय जो रत्नों की वृष्टि से पूजित हुआ था, जन्म समय इन्द्रों ने सुमेरु पर्वत पर जिसका अभिषेक किया और देव जिसकी सदा रक्षा करते हैं, वह नेमिकुमार युद्ध में आपके द्वारा कैसे जीता जा सकता है ? पृथ्वी तल के समस्त राजा मिलकर भी उसे नहीं जीत सकते; क्योंकि उसके देह में अतुल्यबल है। शिशुपाल वध से लेकर अबतक जितने भी युद्ध हुए, क्या आपने उनमें भी कृष्ण और बलदेव की लोकोत्तर सामर्थ्य एवं यादवों की विजय नहीं देखी। सोते हुए सिंह को जगाया न जाय, इसी में दोनों पक्षों का भला है। ऐसी व्यवस्था ही प्रशंसनीय है, जिसमें अपना और दूसरों का समय सुख से व्यतीत हो। हाँ ! यदि अपने शान्त रहने पर भी वे क्रोध करते हैं अथवा ललकारते हैं तो प्रतिकार करने के लिए हम अवश्य लड़ेंगे।" 5 FERFv 21

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