Book Title: Harivanshkatha
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 264
________________ । आपस में ऐसे लड़ते हैं, मार-काट करते हैं कि तिल के दाने के बराबर शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं और असुर देव उन्हें लड़ा-भिड़ाकर आग में घी का काम करते हैं। वहाँ की भूमि ऐसी है कि छूते ही ऐसी पीड़ा होती है, जैसे हजार बिच्छुओं ने एकसाथ काट लिया हो। दुर्गन्ध भरी वैतरणी नदियाँ बहती हैं। आचार्य कहते हैं कि - यदि हम नरकों के ऐसे दुःख सहना नहीं चाहते तो क्रोधादि कषायें और इन्द्रियों के भोगों में उलझ कर पापरूप कार्य न करें। बहुत परिग्रह संग्रह न करें। हिंसा, झूठ, चोरी और कुशील का सेवन न करें। जुआ, शराब, मांस, वेश्या-गमनादि दुर्व्यसनों से दूर रहें, अन्यथा इन नरकों के दुःखों से हम बच नहीं पायेंगे। ___ "मध्यलोक के मध्य में स्थित मेरुपर्वत की ऊँचाई एक लाख योजन है। इसमें एक हजार योजन तो पृथ्वीतल के नीचे है और ९९ हजार योजन ऊपर है। इसी मध्यलोक में असंख्यात द्वीपसमुद्रों से वेष्टित गोल (थाली के आकारवाला) जम्बूद्वीप है। सुमेरु पर्वत जम्बूद्वीप की नाभि के समान मध्य में स्थित है। जम्बूद्वीप की परिधि ३ लाख १६ हजार २०० योजन से कुछ अधिक है। इसमें सात क्षेत्र एवं छह कुलाचल (पर्वत) हैं। जैन भूगोल के अनुसार मध्यलोक के अन्तर्गत ही सुमेरु पर्वत की परिक्रमा करने वाले सूर्य, चन्द्र, तारामण्डल आदि ज्योतिषी देव हैं। पृथ्वीतल से सात सौ नब्बे योजन ऊपर से लेकर नौ सौ योजन तक आकाश की ऊँचाई में सबसे नीचे तारामण्डल स्थित हैं और पृथ्वी से ही नौ सौ योजन की ऊँचाई पर सबसे ऊपर ज्योतिष्क पटल है। इसतरह यह ज्योतिष्क पटल एक सौ दस योजन मोटा है तथा आकाश में घनोदधि वातवलय पर्यन्त सब ओर फैला है। तारों के पटल से दस योजन ऊपर सूर्य का पटल है और उससे अस्सी योजन ऊपर चन्द्रपटल है। उससे चार योजन ऊपर नक्षत्रपटल है, उससे भी चार योजन ऊपर शुक्र, गुरु, मंगल और शनीश्चर ग्रहों के पटल हैं। सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्र, ग्रह और तारा - ये पाँच प्रकार के ज्योतिर्विमान हैं। इनमें रहनेवाले देव भी इन्हीं के समान नामवाले हैं।"

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