Book Title: Harivanshkatha
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 275
________________ उससमय बलदेव के मन में प्रश्न हुआ - हे भगवान ! यह द्वारिकापुरी इन्द्र द्वारा रची गई है सो इसका विघटन होना तो निश्चित ही हैक्योंकि जो किसी के द्वारा बनाई जाती है, उसका विनाश तो अवश्य होता ही है। यह प्रकृति का अकाट्य सिद्धान्त है कि जो वस्तु कृत्रिम होती है, वह नश्वर ही होती है। अत: मैं यह जानना चाहता हूँ कि इसका विनाश कब और किसके द्वारा होगा? क्या द्वारिकापुरी अपने आप समुद्र | में डूब जायेगी ? श्रीकृष्ण की मृत्यु का निमित्त कारण कौन बनेगा? क्योंकि उत्पन्न हुए समस्त जीवों का मरण तो निश्चित ही है। हे प्रभो ! मेरा राग कृष्ण के प्रति बहुत है, मेरा यह मोह कम होकर मुझे संयम की प्राप्ति कितने समय बाद होगी? इसप्रकार बलदेव के द्वारा प्रश्न पूछने पर समस्त चराचर पदार्थों को जाननेवाले श्री नेमिजिनेन्द्र की दिव्यध्वनि में आया - हे बलदेव ! ये द्वारिकापुरी बारहवें वर्ष में मदिरा के निमित्त से द्वैपायन मुनि के द्वारा क्रोधवश भस्म होगी। श्रीकृष्ण अपने अन्तिम समय में कौशाम्बी के वन में शयन करेंगे और जरतकुमार उनके विनाश में निमित्त बनेंगे। अन्तरंग कारण के रहते हुए बाह्य हेतु कुछ न कुछ तो होता ही है - ऐसा ज्ञानी जानते हैं, अत: वे हर्ष-विषाद नहीं करते। ___ हे बलदेव ! संसार के दुःखों से भयभीत आपको भी उसीसमय कृष्ण की मृत्यु का निमित्त पाकर तप की प्राप्ति होगी तथा तप करके आप ब्रह्म स्वर्ग में उत्पन्न होंगे। द्वैपायन रोहणी का भाई और आपका मामा है। वे संसार से विरक्त हो मुनि होकर वन में जाकर तप करने लगे हैं, उन्हें ज्ञात हो गया था कि मेरे निमित्त से बारह वर्ष बाद द्वारिका जलेगी। अत: उस पाप से बचने के लिए वे बारह वर्ष का समय बचाने के लिए पूर्व दिशा की ओर चले गये हैं। इसीप्रकार जरतकुमार को भी ज्ञात हो गया था कि मेरे निमित्त से श्रीकृष्ण की मृत्यु होगी, अत: वह EFFEF 484

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