Book Title: Harivanshkatha
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 237
________________ (२३२ __ मंत्रियों के इतना समझाने पर भी जरासंध ने उनकी बात पर कुछ ध्यान नहीं दिया। यह सच ही है कि | 'विनाश काले विपरीत बुद्धि' जब बुरे दिन आते हैं तो मनुष्य अपनी हठ नहीं छोड़ता। ___ राजा जरासंध ने मंत्रियों को अनसुना कर उनके परामर्श की उपेक्षा करके अजितसेन नामक दूत को द्वारिका भेज दिया। साथ ही अपनी चतुरंग सेना के सेनाध्यक्ष एवं सभी अधीनस्थ राजाओं को युद्ध का | आमंत्रण भेज दिया। समाचार पाते ही कर्ण, दुर्योधन आदि राजा उनके पास आ गये । चलते समय अपशकुन होने पर भी वे रुके नहीं।। | उधर दूत अजितसेन द्वारिका जा पहुंचा और जरासंध का संदेश सुनाते हुए बोला - “जरासंध का कहना है कि तुम यादव लोग आकर शीघ्र ही मुझे नमस्कार करो । यदि तुम दुर्ग का संबल पाकर नमस्कार किए बिना रहोगे तो मैं तुम्हारी दुर्दशा कर दूंगा।" दूत के वचन सुनकर श्रीकृष्ण आदि समस्त राजा कुपित हो उठे और | बोले - तुम्हारा राजा सेना के साथ आ रहा है; आने दो, हम युद्ध से उसका स्वागत-सत्कार करेंगे। हम लोग संग्राम के लिए उत्कंठित हैं - इसप्रकार कहकर यादवों ने दूत को विदा किया। ___मंत्र करने में निपुण विमल, अमल और शार्दूल मंत्रियों ने सलाह कर राजा समुद्रविजय से निवेदन किया कि हे राजन ! साम की नीति स्वपक्ष एवं परपक्ष - दोनों को शान्ति का कारण रहेगा, इसलिए हम लोग जरासंध के साथ साम का ही प्रयोग करें। सब स्वजनों का परिवार ही ये है। जिसप्रकार हमारी सेना में अमोघ बाणों की वर्षा करने वाले योद्धा हैं, उसीप्रकार जरासंध की सेना भी प्रसिद्ध है। युद्ध में यदि एक भी स्वजन की मृत्यु हो गई तो दोनों पक्षों के लिए समान दुःखद होगी। अत: साम के लिए जरासंध के पास दूत भेजा जाय । हाँ, यदि वह साम से शान्त नहीं होता तो हम उसके अनुरूप कार्य करेंगे ही। ___ मंत्रियों के इस परामर्श को स्वीकार कर समुद्रविजय ने बहुत ही चतुर शूरवीर और नीति निपुण लोहजंघ कुमार को दूत के रूप में भेजा। लोहजंघ सेना सहित जरासंध के साथ संधि सन्देश लेकर गया। पूर्वमालव देश में पहुँचकर उसने जहाँ सेना का पड़ाव डाला, वहाँ उसे विचरण करते हुए तिलकानन्द और नन्दन दो मुनिराज मिले । वे दोनों मुनिराज मासोपवासी थे और उनकी प्रतिज्ञा यह थी कि वन में आहार २३ 5 FEBFVom

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