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एक दिन वसन्तसेना का नृत्य होनेवाला था । काका के कहने से मैं भी काका के साथ नृत्यमण्डप में बैठा था। वह सुइयों की नोकों पर सूचिनृत्य करनेवाली थी। उस नृत्य में गाये जानेवाले गाने का मुझे ज्ञान था, अत: मैंने उसे पहले ही संकेत कर दिया। सूचिनृत्य के बाद उसने अंगुष्ठ नृत्य किया, उसका भी मुझे ज्ञान था। उसके लिए मैंने 'नापित' राग का संकेत कर दिया। इसी तरह उसने और भी अनेक नृत्य किए, उन सबके रागों का भी मुझे थोड़ा-बहुत ज्ञान होने से मैं उसे संकेत करता रहा। इससे वह मेरे नृत्यकला के राग-रागनी सम्बन्धी ज्ञान से प्रभावित होकर मेरे रूप और गुणों पर रीझ गई। उस समय तो मैं वापिस घर
आ गया; परंतु उसने अपनी माँ से जाकर यह कह दिया कि वह मेरे बिना जीवित नहीं रह सकती। जबकि मैंने उसमें कोई रुचि नहीं ली थी।
वसंतसेना की माँ ने बेटी की व्यथा देखकर मुझे उससे मिलाने के लिए मेरे काका रुद्रदत्त को राजी कर लिया। यद्यपि मुझे वैश्याओं के नृत्य-गीत में बिल्कुल भी आकर्षण व रुचि नहीं थी; किन्तु बचपन में अनेक कलाओं के साथ गीत-संगीत कला का भी मुझे ज्ञान मिला था; इसकारण किस नृत्य में कौन-सी रागरागनी चलती है, इसका ज्ञान मुझे पूर्व से ही था। इसकारण उत्साह में आकर मैंने नृत्यमण्डप में नृत्य में बजाये जाने वाले राग-रागनी के संकेत कर दिये । मुझे क्या पता था कि इसका यह परिणाम होगा।
पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार एक दिन काका रुद्रदत्त ने मार्ग में जाते समय मुझे वसन्तसेना के घर ले जाने के लिए उस नृत्यांगना की गली में मेरे आगे-पीछे दो उन्मत्त हाथियों को लगा दिया। उनसे प्राणों की सुरक्षा पाने के लिए न चाहने पर भी मुझे उस वैश्या के घर में प्रविष्ट होना पड़ा।
घर के अन्दर पहुँचते ही पहले से तैयार बैठी वसंतसेना की माँ कलिंगसेना ने हम दोनों का खूब स्वागत किया। फिर पूर्व नियोजित योजना के अनुसार मेरे काका रुद्रदत्त और कलिंगसेना ने जुआ खेलना प्रारंभ किया। जुआ में मेरे काका रुद्रदत्त का उसने दुपट्टा तक जीत लिया। तब मुझसे न रहा गया और मेरे काका को हटाकर मैं स्वयं जुआ खेलने को उद्यत हुआ तो कलिंगसेना की जगह उसकी बेटी वसंतसेना आ पहुँची;
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