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|| को कैद के बंधन से छुड़ायेगा।
देवकी का सातवाँ पुत्र (कृष्ण) शंख, चक्र, गदा और खड़ग को धारण करनेवाला होगा और कंस आदि शत्रुओं को मारकर समस्त पृथ्वी का पालन करेगा। शेष छहों पुत्र चरम शरीरी होंगे। उनकी किसी के द्वारा (अकाल) मृत्यु हो ही नहीं सकती; अत: तुम चिन्ता छोड़ो।
बड़े भाई द्वारा जब छहों छोटे भाइयों की स्त्रियों को छहों भाईयों के वैरागी होने के समाचार ज्ञात हुए तो उन्होंने भी विरक्त हो दीक्षा ले ली। अन्त में इस स्वार्थी संसार का दुःखद स्वरूप बड़े भाई सुभानु की समझ में भी आ गया इसलिए उसने भी सपत्नीक उन्हीं वरधर्म गुरु के पास दीक्षा ले ली। ___ तदनन्तर एक बार जब वे सातों मुनिराज अपने गुरु के साथ विहार करते हुए उज्जैन आये तो उनके दर्शन करके वज्रमुष्टि ने उनसे पूछा कि आपके दीक्षा लेने में निमित्त कारण कौन बना था, आपने दीक्षा क्यों एवं कैसे ली? ___ उत्तर में उन्होंने उसी वज्रमुष्टि और उसकी पत्नी के त्रियाचारित्र का सब वृतान्त कहा, जिसका पूरा पता स्वयं वज्रमुष्टि को भी नहीं था। इसकारण वज्रमुष्टि को बहुत खेद हुआ और उसीसमय उसने भी दीक्षा ले ली। उसीसमय आर्यिका जिनदत्ता के साथ विहार करती हुई सात आर्यिकायें भी वहाँ आ पहुँचीं। ये आर्यिकायें कोई और नहीं, सेठ भानु के सुभानु आदि सात पुत्रों की सातों (पूर्व) पत्नियाँ ही थीं। ___ मंत्री की पत्नी ने उन आर्यिकाओं से दीक्षा का कारण पूछा - इन आर्यिकाओं ने उसी मंत्री के कुटिल | चरित्र का वर्णन करके उसे अपने वैराग्य का एवं दीक्षा का कारण बताया तो उसे सुनकर मंत्री की पत्नी को भी अपना पिछला सब वृतान्त स्मृत हो गया, उसकी आँखों के सामने वे दृश्य प्रत्यक्षवत् झलकने लगे, | जिससे उसे स्वयं अपने आप पर ग्लानि होने लगी, नफरत होने लगी और वह पश्चाताप की आग में तपने लगी। बस, फिर क्या था, वह पश्चाताप की आग में तपकर वह कुन्दन बन गई और उनसे भी आर्यिका ॥१७