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“मैं जानना चाहता हूँ क्या सचमुच बुरा हुआ ? अरे ! रागी क्या जाने विरागियों की बातें। वो दया की नहीं, श्रद्धा की पात्र बन गई, श्रद्धेय बन गई, पुजारिन से पूज्य बन गईं। राजमती बारात वापिस जाने के कारण आर्यिका नहीं बनी थी, बल्कि उनका भी राग टूट गया था, आर्यिका के व्रत लेना उनकी मजबूरी नहीं, अहो भाग्य था ! अहो भाग्य !! महाभाग्य !!!
राजमती और नेमिकुमार के इस विवाह प्रसंग से हम राजमती के अन्तर्बाह्य व्यक्तित्व का सहज अनुमान लगा सकते हैं। राजमती (राजुल) ने तत्काल विरागी होकर स्वतंत्र रूप से आर्यिका के व्रत लेने का | कल्याणकारी निर्णय लेकर सच्चे सुख का मार्ग अपना लिया था। वे रोने नहीं बैठी थी; उनकी आँखों से एक आंसू भी नहीं निकला था, क्योंकि वे यह जान गयी थीं कि "नेमिकुमार ने जो निर्णय लिया है, वही मंगलमय है, वही मंगलकरण है । अत: मैं भी उन्हीं के पद चिह्नों पर चलकर अपना कल्याण करूँगी।"
भला ऐसी विवेकी नारियाँ रोने कैसे बैठ सकती थीं ? सचमुच वे बिल्कुल भी नहीं रोईं थीं; क्योंकि यह रोने का नहीं खुशी मनाने का अवसर था ।
“जब श्रीकृष्ण ने मल्लयुद्ध का प्रस्ताव रखा तब नेमिकुमार ने युद्ध न कर अपने पैर को जमीन पर जमा कर उसे हिलाने के प्रस्ताव द्वारा अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया था ।
इस घटना से भी नेमिकुमार और राजुल का तथा उनके निमित्त से विरक्त हुए लाखों जीवों का कल्याण | तो हो ही गया था। आज भी जो उनके इस आदर्शजीवन चरित्र को पढ़ेगें, उनका भी कल्याण होगा । इसप्रकार हरिवंश कथा में इन प्रमुख पात्रों के अतिरिक्त और भी बहुत से महत्त्वपूर्ण प्रेरणाप्रद पात्र हैं, जिनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। उन सबका चरित्र-चित्रण यथास्थान सर्गों में किया ही गया है । अनेक पात्र तो ऐसे हैं, जिन पर स्वतंत्र पौराणिक कथायें या चरित्र लिखे गये हैं। जैसे कि प्रद्युम्न चरित्र, पाण्डव पुराण, चारूदत्त चरित्र आदि ।
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वर्तमान पाठकों के मनोविज्ञान को ध्यान में रखकर अति विस्तार करना ठीक नहीं समझा, अत: विस्तार पर नियंत्रण रखने के कारण ही यहाँ पृथक् से सभी पात्रों का परिचय नहीं दिया गया ।
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