Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गोम्मटसार जीवकाण्ड
कन्नड़वृत्ति
'देशविरतनोळं प्रमत्तसंयतनोळं इतरनप्प अप्रमत्तसंयतनोळं क्षायोपशमिक संयममक्कुं। देशसंयतापेक्षेयिंदं प्रत्याख्यानकषायंगळुदपि सल्पट देशघातिस्पर्धकानन्तकभागानुभागोदयदोडने उदयमनैय्ददे क्षीयमाणंगळप्प विवक्षितनिषेकंगळ सर्वघातिस्पर्धकंगळ नंतबहुभागंगळुदयाभावलक्षणक्षयदोळमवरुपरितन निषेक गळप्पनुदयप्राप्तंगळ्गे सदवस्थालक्षणमप्पुपशममुंटागुत्तिरलु समुद्भूतमप्पुदरिंदं चारितमोहमं कुरुत्तु देशसंयममदु क्षायोपशमिकभावमेंदु पेळल्पद्रुदु। अंते प्रमत्ताप्रमत्तर्ग संज्वलनकषायंगळ उदितदेशघातिस्पर्धकानन्तैकभागानुभागदोडने उदयमनैय्ददे क्षीयमाणंगळप्प विवक्षितोदयनिषेकंगळ् सर्वंघातिस्पर्धकानन्तबहुभागंगळुदयाभावलक्षणक्षयदोळमवरुपरितननिषेकंगळप्पनुदयप्राप्तंगळ्गे सदवस्थालक्षणमप्प उपशममुंटागुत्तिरलु समुत्पन्नमप्पुदरिंद चारित्रमोहमं कुरुतिल्लियुं सकलसंयममुं क्षायोपशमिकभावमेंदुं पेळल्पडुबुदेंवुदु श्रीअभयसूरिसिद्धान्तचक्रवर्तिगळभिप्रायं।' संस्कृत जीवतत्त्वप्रदीपिका
'देशविरते प्रमत्तसंयते तु पुनः इतरस्मिन् अप्रमत्तसंयते च क्षायोपशमिकसंयमो भवति। देशसंयतापेक्षया प्रत्याख्यानकषायाणां उदयागतदेशघातिस्पर्धकानन्तैकभागानुभागोदयेन सहानुदयागतक्षीयमाणविवक्षितनिषेकसर्वघातिस्पर्धकानन्तबहभागानामुदयाभावलक्षणक्षये तेषामुपरितननिषेकाणां अनुदयप्राप्तानां सदवस्थालक्षणोपशमे च सति समुद्भूतत्वात्। चारित्रमोहं प्रतीत्य देशसंयमः क्षायोपशमिकभाव इत्युक्तम्। तथा प्रमत्ताप्रमत्तयोरपि संज्वलनकषायाणामुदयागतदेशघातिस्पर्धकानन्तैकभागानुभागेन सह अनुदयागतक्षीयमाणविवक्षितोदयनिषेकसर्वघा तिस्पर्धकानन्तबहभागानां उदयाभावलक्षणक्षये तेषां उपरितननिषेकाणामनुदयप्राप्तानां सदवस्थालक्षणोपशमे च सति समत्पन्नत्वात चारित्रमोहं प्रतीत्यात्रापि सकलसंयमोऽपि क्षायोपशमिको भाव इति भणितं, इति श्रीमदभयचन्द्रसूरिसिद्धान्तचक्रवर्त्यभिप्रायः।'
तेरहवीं गाथा के व्याख्यान मन्दप्रबोधिका टीका के रचयिता श्री अभयचन्द्र सूरि सिद्धान्तचक्रवर्ती ने प्रमत्त, अप्रमत्त गुणस्थान में क्षायोपशमिक भाव कहा है। उसी का निर्देश केशववर्णी ने अपनी कर्णाटवृत्ति में किया है और उसी का अनुवाद संस्कृत जीवतत्त्वप्रदीपिका में है। इस उद्धरण से यह स्पष्ट है कि मन्दप्रबोधिका केशववर्णी के सम्मुख थी। तथा केशववर्णी की टीका कन्नड़ में होते हुए भी संस्कृत शब्दबहुल है। उसमें अधिकतर विभक्तियाँ और क्रियापद ही कन्नड़ भाषा के हैं। सैद्धान्तिक सब शब्द वही हैं जो संस्कृत में प्रचलित हैं। अतः उसका संस्कृत रूपान्तर करने में संस्कृत टीकाकार को मन्दप्रबोधिका का साहाय्य अवश्य मिला है। दोनों टीकाओं के मिलान से यह स्पष्ट हो जाता है। किन्तु संस्कृत जीवतत्त्वप्रदीपिका के रचयिता ने स्वयं मन्द्रप्रबोधिका का कोई अनुसरण नहीं किया है, कर्नाटवृत्ति और मन्दप्रबोधिका में जहाँ शब्दसाम्य है, वहीं उसके संस्कृत रूपान्तर में शब्दसाम्य पाया जाता है। यह बात भी ऊपर के उद्धरण से स्पष्ट है।
मन्दप्रबोधिका प्रारम्भिक अवतार वाक्य ही विस्तृत होकर कर्नाटकवृत्ति का अवतार वाक्य बनाया गया
मन्दप्रबोधिका का अवतार वाक्य इस प्रकार है
'श्रीमदप्रतिहतप्रभावस्याद्वादशासनगुहाभ्यन्तरनिवासि प्रवादिमदान्धसिंधुरसिंहायमानसिंहनन्दिमुनीन्द्राभिनन्दित-गंगवंशललामराजसर्वज्ञाद्यनेकगुणनामधेयभागधेय-श्रीमद्राचमल्लदेव महीवल्लभ महामात्य पदविराजमान-रणरंगमल्लासहायपराक्रमगुणरत्नभूषण सम्यक्त्वरत्ननिलयादिविविधगुणनामसमासादितकीर्तिकान्त-श्रीचामुण्डरायभव्यपुण्डरीकद्रव्यानुयोग-प्रश्नानुरूपं महाकर्मप्रकृतिप्राभृतप्रथमसिद्धान्तजीवस्थानाख्यप्रथमखण्डार्थसंग्रहं गोम्मटसारनामधेयपञ्चसंग्रहं शास्त्रं प्रारभमाणः'..........
केशववर्णी की जीवतत्त्वप्रदीपिका टीका में भी प्रथम गाथा का अवतार वाक्य शब्दशः प्रायः यही है।
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