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भैषज्यगुरुसूत्रम्
२३ गतस्य [भैषज्यगुरुवैदूर्यप्रभस्यानन्द' ] बोधिसत्त्वचर्यामप्रमाणा. मुपायकौशल्यमप्यप्रमाणम् [अप्रमाणं चास्य] प्रणिधान विशेष] विस्तरम् । आकाङ्क्षमाणोऽहं तस्य तथागतस्य कल्पं वा कल्पावशेष' वा बोधिसत्त्वचारिकाया विस्तरविभङ्ग निर्दिशेयम् । क्षीयेतानन्द कल्पं न वेव [शक्यं] तस्य भगवतो भैषज्यगुरुवैदूर्यप्रभस्य तथागतस्य पूर्वप्रणिधानविशेषविस्तरान्तमधिगन्तुम्'।
तेन खलु पुनः समयेन तस्यामेव पर्षदि" त्राणमुक्तो नाम बोधिसत्त्वो महासत्त्वः सन्निपतितोऽभूत् । सन्निषण्णः1° उत्थाया
1 A & 1 अप्रमाणम् आनन्द ; Tib. गुरु सार गाउँपापा २८ དེ་བཞིན་ གཤེགས་པ་ སྨན་ གྱི་ བ ་ཌ་རའི་ འོད་དེའི་ བྱང་ཆུབ cte.
2 ( मप्यप्रमाणं प्रणिधानविस्तरम् । version. Tib. SEAST CA गया। को। शाम उस རྒྱས་པ་ཡང་ ཚད་མེད་དོ། ང་དེ་བཞིན་གཤེགས་ པ་དེའི་བྱང་ ཆུབ་སེམས་ सा मा २का समाधम ( कल्पाधिक ) If ཆེར་ ཡང་དག་པར་ བཤད་ པར་ འདོད་ ཀྱང་ བསྐལ་པ་ ཟད་བར་ འགྱར་ གྱི བཅོམ་ལྡན་ འདས་ དེ་ བཞིན་ གསེགས་ པ་ སྨན་གྱི་ བླ་ བ་ཌ་ར་འ་ འོད་ དེའི་ སྔོན་གྱི་ སྨོན་ལམ་གྱི་ཁྱད་བར་ གྱིས་པའི་ མཐའ་ 54°215 2955 | Cf. Taisho cd., XIV, p. 407, Col. 2, 11. 6-9.
4 ( कल्पेन वा कल्पावशेषेण 5 A °चारिकां विस्तर० ; C चारिका विस्तरेण संप्रकाशेयम् (5 C त्वेव तस्य A विस्तरपर्यन्तमधि० ; C विस्तरस्य पर्यन्तोऽधिगन्तुम् 8 C तेन च पुनः
9 A तत्र परिषायां ; C तस्मिन् एव 10 C omits सनिपतितोऽभूत् सनिषण्णः
3 The Ms is confusing. The text given here is based mainly on the Tib
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