Book Title: Fulo ka Guccha Author(s): Nathuram Premi Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya View full book textPage 9
________________ फूलोंका गुच्छा। RAAAAAAAAAAAAAAMAnnn साहस कल उस समय नष्ट होगा, जब राजाकी आज्ञासे तू शूलीपर चढ़ाया जायगा! वसन्तके हृदयमें इससे जो अपमानजन्य वेदना हुई, वह शूलके आघातसे किसी प्रकार कम न थी। जिस इन्दिराके श्रीचरणोंमें वह अपने हृदय-भांडारके श्रेष्ठसे श्रेष्ठ बहुमूल्य अर्घ्य एकके बाद एक अर्पण करके खाली हो गया था, आज उसीने उसे तुच्छसे तुच्छ समझकर पैरोंसे ठुकरा दिया ! संसारमें क्या प्रेम और भक्तिका बदला इसी प्रकार दिया जाता है ? वसन्तने इन्दिराके पैरोंमें पड़कर कहा-शूलीपर चढ़ाना हो, तो चढ़वा देना, मैं रोकता नहीं हूं; परन्तु राजकुमारी, विचारके देखो, बाहरसे दोन होकर भी मैं अन्तरमें दीन नहीं हूं। जो ऐश्वर्य मैंने तुम्हारे चरणोंपर निछावर कर दिया है, उसे तुम किसी महाराजके भांडारमें भी खोजनेसे नहीं पाओगी। कंगालको सब प्रकारसे कंगाल करके मत मारो! __ इन्दिरा हँस पड़ी। उसका वह उपहास करोंतके समान कर-कर करता हुआ वसन्तके हृदयको इस पारसे उस पार तक चीर कर चला गया । - वसन्तने विनतीके स्वरसे कहा—मेरी इतने दिनोंकी व्यर्थ पूजाके उपहारस्वरूप मेरा एक अन्तिम अनुरोध मान लो, तो अच्छा हो । कल सबेरेसे पहले यह बात तुम किसीके आगे प्रकाशित नहीं करना । मैं एक बार कुमारी शुक्ला और आनंदिताके साथ और भी अपने भाग्यकी परीक्षा करना चाहता हूं। इन्दिराने गर्वसे कहा-अच्छा तुम्हारी प्रार्थना मंजूर है। मैं स्वयं ही उन्हें बुलाये देती हूं। पर मैं यह भी कह देती हूं कि तुम्हारी यह केवल दुराशा है । विश्वास रक्खो, कोई भी राजकुमारी मालीके गलेमें प्रणयकी माला नहीं डालेगी और तो क्या काली यमुना भी नहीं डालेगी ! माली चाहे जितना सुन्दर और मनोहर क्यों न हो राजकुमारियां उसे अपना प्रणयी नहीं बना सकतीं। ". इन्दिराने जाकर शुक्लाको भेज दिया । शुक्ला भी. उसी प्रकारसे वसन्तके प्रणयनिवेदनका तिरस्कार करके लौट आई। उसके पीछे आनन्दिता गई और वह भी व्यथित मालीको ज्वालामय शब्दोंसे और भी दुखी करकेPage Navigation
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