Book Title: Dwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चातु मोसिक व्याख्यानम्. NUSAIGALASAMACLASSAGAR थोडे अक्षर और महा-अर्थ ऐसी द्वादशांगी ५, अनवद्य-निष्पापआचरण ६, परिज्ञा-पापत्यागकर सर्व प्रकारसे वस्तुतत्वका ज्ञान होना ७, प्रत्याख्यान-छोडने योग्य वस्तुका त्याग, सामायिकके ये आठ नाम कहे हैं। ___ अब इन्होंका क्रमसे ८ दृष्टान्त कहते हैं। उनमें पहला दमदन्त राजरिषिका दृष्टान्त कहते हैं, जैसे__हस्तिशीर्ष नगरमें दमदन्तनामका राजा था। उसको एक दिन हस्तिनापुरके खामी पाण्डवों और कौरवोंके। साथ सीमाके निमित्त महान् विवाद हुआ। कई दिनोंके बाद दमदन्तराजा जरासंध प्रतिवासुदेवकी सेवामें जानेसे पाण्डव-कौरवोंने उसका देश भांगा। यह बात सुनकर क्रोधातुर दमदन्त राजा जल्दी बहुतसेनालेकर हस्तिनापुरपर चढकर आया । वहां दोनोंका परस्पर महा-युद्ध हुआ, परन्तु दैवयोगसे पाण्डवकौरव भग गए । दमदन्त राजा विजय प्राप्त कर अपने नगरको आया । बादमें एक दिन दमदन्त राजा सन्ध्याके समय है पञ्चवर्णके बादलोंका स्वरूपदेखकर बैराग्य-प्राप्तहुआ-संसारको असारजानकर अर्थात् बादलके जैसा अनित्य मानकर उसने प्रत्येकवुद्ध पणेसे दीक्षाग्रहणकी ! उसके बाद ग्रामानुग्राम विहार करते हुए वे अन्यदा हस्तिनापुर आए और दरवाजेके बाहर कायोत्सर्गमें रहे । तब बगीचेको जातेहुए पाण्डवोंने मार्गमें उस है मुनिको देखा और लोगोंसे पूछा तो जाना कि ये दमदन्तराजऋषि हैं, तब जल्दी घोडोंसे उतरकर विधि-युक्त वन्दना कर उसके दोनों प्रकारके बलकी प्रशंसा किया-यह मुनि जब राज्य करते थे तब हमको भी जीता | For Private and Personal Use Only

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