Book Title: Dwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir __ अर्थ-सामायिक की सामग्री एक मुहूर्त मात्र भी जो हमको मिले तो हमारा देवपन सफल हो ऐसा देवता * भी चाहते हैं-अर्थात् देशविरति या सर्वविरति सामायिक इन्द्रादिक देवता नहिं करसकते हैं, ऐसा सामायिक 8|दुर्लभ हैं। यहां सामायिक के करनेवाले श्रावक दो प्रकारके होते हैं।-ऋद्धिमान् और ऋद्धिरहित । इनमें जो|| ऋद्धिरहित होय सो साधुके पासमें १, जिनमन्दिरमें २, पोसहसालामें ३, अथवा अपने घरमें निर्विघ्न ठिकाने सामायिक करे,। ओर जो राजादिक ऋद्धिमान् होवे वह बडे आडम्बरसे साधुके पास उपाश्रयमें आकर सामायिक करे । अर्थात् विधिसे सामायिक उच्चार कर पीछे 'इरियावहि' पडिक्कम, ऐसा आवश्यक बृहदवृत्तिा| दिकमें कहा है। इस कारणसे कि ऐसे बडे लोग भी सामायिक करते हैं यह देखकर लोकमें जिनशासनकी बडी प्रभावना होती है । अब सामायिकके नाम कहते हैं, गाथा "सामाइयं १ समइयं २, सम्मंबाओ३ समास ४ संखेवो ५। अणवजं ६ च परिणा ७ पच्चक्खाणे ८ य ते अट्र ॥१॥ अर्थ-सामायिक नाम समभाव १, समयिक अर्थात् सम्यक् सर्वजीवोंमें दयापूर्वक प्रवृत्ति २, सम्यग बादराग द्वेष और भय परिहार कर यथावस्थित कहना ३, समास-थोडे अक्षरोंसे कर्म-नाशक तत्व-बोध ४, संक्षेप-टू CCCCCCCCCCCCCCESSAY For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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