Book Title: Dhyanashatakam Part 2
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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ध्यानशतकम्
एह अनिष्ट गमाडिवा, चिंते तास उपायो रे; प्रथम आर्त मन जल्पथी, जिनवर देव दिखायो रे । आर्त्तः ५ राज्य बंधु स्त्री नाशथी, शोक मोह भ्रम थायो रे; बीय आर्त्त दुःख आर्त ए, इष्टवियोग कहायो रे । आर्त० ६ कास श्वास ज्वर पित्तथी, श्लेष्म धात दुख धामो रे; आधि व्याधिथी आर्त य, रोग चिंते इण नामो रे । आर्त्त० ७ स्वल्प रोग पिण उपना, चिंते बहुत उपायो रे; चित्त खेद बहु अनुभवे, तीजो आर्त कहायो रे । आर्त्त० ८ काम भोग स्त्री राजस्युं, अन्य सरव आनंदो रे; इंद्रिय सुख नित चिंतवे, तूर्य आर्त भवकंदो रे । आर्त्त० ९ जिन सुरपति पदपुण्यथी, रिपु कुल क्षय पण तेमो रे; पूज्य लाभ चाहे हुवे, आर्त नियाणा एमो रे । आर्त्त० १० सुख काजे रिपु मारिवा, जेह दुष्टपरिणामो रे; आर्त नियाणा नाम ते, दाख्यो दुखनो धामो रे । आर्त्त० ११ एम संक्षेपथी चोविधे, कह्यो आर्त्त जिनरायो रे; अनंत जीव परिणामथी, भेद अनंत कहायो रे । आर्त्तः १२ ए कुध्यान चउभेदथी, छे पांचे गुणधामो रे; . छठेमै त्रय भेद छे, नही नियाणा नामो रे । आर्त्त० १३ निंद्य लेशथी उपजे, एह दुरित दव धामो रे पूर्वबद्ध संस्कारथी, वली थाय दुख धामो रे । आर्त्तः १४ फल तिरिगति छे एहनो, काल महूरत मानो रे; मिश्र भाव बल ए हुवे, दुक्ख अनंतनो थानो रे । आर्त्त० १५ शंका शोक प्रमादता, भय कलि चिंता भो रे; विषयोत्सुक उन्मादता, भ्रांति नींद तनु सम्मो रे । आर्त्त० १६ बाह्य लिंग ए आर्त्तना, दाख्या श्रुतमें एमो रे; हेय कुध्यान करी ग्रहो, देवचंद्र गुण हेमो रे । आत० १७
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