Book Title: Dhyanashatakam Part 2
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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परिशिष्टम्-२० परमपूज्यसंविग्नशिरोमणिविजयानन्दसूरिसङ्कलितनवतत्त्वसङ्ग्रहे
निर्जरातत्त्वे ध्यानस्वरूपवर्णनम् । अथ 'निर्जरा'तत्त्वं लिख्यते-अथ 'निर्जरा' शब्दार्थ-'निर्' अतिशय करके 'ज' कहतां हानि करे कर्मपुद्गलनी ते 'निर्जरा' कहीये । अथ निर्जराके बारा भेद लिख्यते-अनशन १, ऊनोदरी २, भिक्षाचरी ३, रसपरित्याग ४, कायक्लेश ५, प्रतिसंलीनता ६, प्रायश्चित्त १, विनय २, वैयावृत्त्य ३, स्वाध्याय ४, ध्यान ५, व्युत्सर्ग ६; एवं १२ । पहेले ६ भेद बाह्य निर्जराके जानने; आगले ६ भेद अभ्यंतर निर्जराके जानने, तपवत् । इस तरे निर्जराके भेदों का विस्तार उववाइ शास्त्र में जानने । इहां तो किंचित् मात्र ध्यान च्यार का स्वरूप लिख्यते श्रीजिनभद्रगणिक्षमाश्रमणविरचित ध्यानशतकथी।
अथ ध्यानस्वरूप दोहराशुक्ल घ्यान पावक करी, करमेंधन दीये जार; वीर धीर प्रणमुं सदा, भवजल तारनहार १ अथ आर्तध्यान के चार भेद कथन, सवईया इकतीसा
द्वेषहीके बस पर अमनोग विसे घर तिनका विजोग चिंते फेर मत मिलीयो शूल कुण्ठ तप रोग चाहे इनका विजोग आगेकू न होय मन औषधि में भिलियो राग बस इष्ट विसे साता सुख माहि लिये नारी आदि इष्टके संजोग भोग किलियो
इंद चंद धरनिंद नरनको इंद थऊं इत्यादि निदान कर आरतमे झिलियो १ अथ स्वामी अने लेश्या कथन । सवईया इकतीसा
राग द्वेष मोह भर्यो आरतमे जीव पर्यो बीज भयो जगतरु मन भयो आंध रे किसन कपोत नील लेसा भइ मध मही उतकृष्ट जगनमे एकही न सांध रे आरतके वस पर्यो नर जन्म हार को चलत दिखाइ हाथ चढ चहूं कांध रे
आतम सयाना तोकू एही दुखदाना जाना दाना मरदाना है तो अब पाल बांध रे २ अर्थ आर्तके लिंग -
रोद करे सोग करे गाढ स्वर नाद करे हिरदेकू कूट मरे इष्ट के विजोग ते चित्त मांजि खेद करे हाय हाय साद करे वदन ते लाल गिरे कष्टके संजोग ते निंदे कृत आप पर रिद्धि देख चित्त ताप चाहे राग फाहे मेरे ऐसा क्यु न जोग ते विसेका पिया सामन आसा खासा भास वन आलसी विसेमे गृद्ध मूढ मति जोग ते ३
इति आर्तध्यानं संपूर्णम् ।।१।।
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