Book Title: Dhyanashatakam Part 2
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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परिशिष्टम्-२२, जैनेन्द्रसिद्धांतकोशसंकलितध्यानस्वरूपम्
२७९ संवित्तिसे भेद विकल्पको नष्ट करता हुआ वह ही २ द्रव्यरूप ध्येय निर्देश परमात्मा (शिव) गरुड अथवा कामदेव है। १ प्रतिक्षण प्रवाहित वस्तु व विश्व ध्येय हैं। नोट- (तीनो तत्त्वोंके लक्षण-देखो वह वह नाम। २ चेतनाचेतन पदार्थोका यथावस्थितरूप ध्येय है। (६.) अन्य ध्येयभी आत्मामें आलेखितवत् ३ सात तत्त्व व नौ पदार्थ ध्येय हैं । प्रतीत होते हैं
४ अनीहितवृत्तिसे समस्त वस्तुएँ ध्येय हैं। त. अनु./१३३ ध्याने हि बिभ्रति स्थैर्य ध्येयरूपं ३ पंचपरमेष्ठीरूप ध्येय निर्देश परिस्फुटम्। आलेखितमिवाभाति ध्येयस्या- १ सिद्धोंका स्वरूप ध्येय है। सन्निधावपि ॥१३३। ध्यानमें स्थिरताके परिपुष्ट २ अर्हन्तोंका स्वरूप ध्येय है। हो जानेपर ध्येयका स्वरूप ध्येयके सन्निकट न ३ अर्हन्तका ध्यान पदस्थ-पिण्डस्थ व रूपस्थ होते हुए भी, स्पष्ट रूपसे आलेखित जैसा प्रतिभासित तीनों ध्यानोंमे होता है। होता है।
४ आचार्य-उपाध्याय व साधु भी ध्येय हैं। ६. ध्येय
५ पंचपरमेष्ठीरूप ध्येयकी प्रधानता
पंचपरमेष्ठीका स्वरूप। -दे० वह वह नाम । क्योंकि पदार्थोका चिन्तक ही जीवोंके प्रशस्त या
४ निज शुद्धात्मारूप ध्येय निर्देश अप्रशस्त भावोंका कारण है, इसलिए ध्यानके प्रकरणमें यह विवेक रखना आवश्यक है. कि १ निज शुद्धात्मा ध्येय है। कौन व कैसे पदार्थ ध्यान किये जाने योग्य हैं २ शुद्ध पारिणामिकभाव ध्येय है और कौन नहीं।
३ आत्मरूप ध्येयकी प्रधानता । (१) ध्येय सामान्य निर्देश
५ भावरूप ध्येय निर्देश १ ध्येयका लक्षण ।
१ भावरूप ध्येयका लक्षण। २ ध्येयका भेद
२ सभी वस्तुओंके यथावस्थित गुण पर्याय ध्येय आज्ञा-अपाय आदि ध्येय निर्देश। ____-दे० धर्मध्यान/१
___३ रत्नत्रय व वैराग्यकी भावनाएं ध्येय हैं।
३ रत्न ३ नाम व स्थापनारूप ध्येय निर्देश।
४ ध्यानमें भाने योग्य कुछ भावनाएँ । पाँच धारणाओंका निर्देश।
[१.] ध्येय सामान्य निर्देश
-दे० पिण्डस्थध्यान। (१.) ध्येयका लक्षण आग्नेयी आदि धारणाओंका स्वरूप । चा. सा./१६७/२ ध्येयमप्रशस्तप्रशस्तपरिणाम
-दे० वह वह नाम । कारणम्। जो अशुभ तथा शुभ परिणामोंका कारण
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