Book Title: Dhyanashatakam Part 2
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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परिशिष्टम्-२२, जैनेन्द्रसिद्धांतकोशसंकलितध्यानस्वरूपम्
२८३ [४.] निज शुद्धात्मारूप ध्येय निर्देश अभ्यास करे ।२१। (१.) निज शुद्धात्मा ध्येय है
(२.) शुद्धपारिणामिक भाव ध्येय है ति.प./९/४१ गय सित्थमूसगब्भायारो नि.सा./ता.वृ./४१ पञ्चानां भावानां मध्ये... रयणत्तयादिगुणजुत्तो। णियआदा ज्झायव्वो पूर्वोक्तभावचतुष्टयं सावरणसंयुक्तत्वात् न खयहिदो जीवघणदेसो ।४१। मोमरहित मूषकके मुक्तिकारणम् । त्रिकालनिरुपाधिस्वरूपअभ्यन्तर आकाशके आकार, रत्नत्रयादि गुणोंयुक्त, निरञ्जननिजपरमपञ्चमभावभावनया पञ्चमगतिं अनश्वर और जीवघनदेशरूप निजात्माका ध्यान मुमुक्षवो यान्ति यास्यन्ति गताश्चेति। पाँच भावों से करना चाहिए ।४१।
पूर्वोक्त चार भाव आवरणसंयुक्त होनेसे मुक्तिके रा.वा./९/२७/७/६२५/३४ एकस्मिन्
कारण नहीं है। निरुपाधि निजस्वरूप है, ऐसे निरंजन द्रव्यपरमाणौ भावपरमाणौ वार्थे चिन्तानियमो
निज परमपंचमभावकी भावनासे पंचमगति (मोक्ष) इत्यर्थः... । एक द्रव्य परमाणु या भावपरमाणु
में मुमुक्षु जाते हैं, जायेंगे और जाते थे। (आत्माको निर्विकल्प अवस्था) में चित्तवृत्तिको द्र.सं./टी./५७/२३६/८ यस्तु शुद्धद्रव्यशक्तिरूप: केन्द्रित करना ध्यान है। (दे० परमाणु) शुद्धपारिणामिकपरमभावलक्षणपरमनिश्चयमोक्षः स म.पु./२१/१८,२२८ अथवा ध्येयमध्यात्मतत्त्वं
पूर्वमेव जीवे तिष्ठतीदानीं भविष्यतीत्येवं न । स मुक्तेतरात्मकम म्। तत्तत्त्वचिन्तनं ध्यातः उपयोगस्य
एव रागादिविकल्परहिते मोक्षकारणभूते शुद्धये ।१८। ध्येयं स्याद परमं
ध्यानभावनापर्याये ध्येयो भवति। जो शुद्धद्रव्यकी तत्त्वमवाङ्मानसगोचरम् ।२२८ । संसारी व मुक्त
शक्तिरूप शुद्धपरम पारिणामिकभावरूप परमनिश्चय ऐसे दो भेदवाले आत्मतत्त्वका चिन्तवन ध्याताके
मोक्ष है, वह तो जीवमें पहले ही विद्यमान है,अब उपयोगकी विशुद्धिके लिए होता है ।१८। मन
प्रगट होगी ऐसा नहीं है। रागादि विकल्पोंसे रहित वचनके अगोचर शुद्धात्म तत्त्व ध्येय है ।२२८ ।
मोक्षका कारणभूत ध्यान भावनापर्यायमें वही मोक्ष
(त्रिकाल निरुपाधि शुद्धात्मस्वरूप) ध्येय होता है। ज्ञा./३१/२०-२१ अथ लोकत्रयीनाममूर्त्त
(द्र.सं./टी./१३/३९/१०) परमेश्वरम्। ध्यातुं प्रक्रमते साक्षात्परमात्मानमव्ययम् ।२०। त्रिकालविषयं साक्षाच्छक्ति- (३.) आत्मारूप ध्येयकी प्रधानता व्यक्तिविवक्षया। सामान्येन नयेनैकं परमात्मान- त. अनु./११७-११८ पुरुष: पुद्गलः कालो मामनेत् ।२१। तीन लोक के नाथ अमूर्तीक धर्माधर्मों तथाम्बरम्। षड्विधं द्रव्यमाख्यातं तत्र परमेश्वर परमात्मा अविनाशीका ही साक्षात् ध्यान ध्येयतमः पुमान् ।११७। सति हि ज्ञातरि ज्ञेयं करनेका प्रारम्भ करे ।२०। शक्ति और व्यक्तिकी ध्येयतां प्रतिपद्यते । ततो ज्ञानस्वरूपोऽयमात्मा विवक्षासे तीन कालके गौचर साक्षात् सामान्य ध्येयतमः स्मृतः ॥११८ । पुरुष (जीव), पुद्गल, (द्रव्यार्थिक) नयसे एक परमात्माका ध्यान व काल, धर्म, अधर्म और आकाश ऐसे छह भेदरूप
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