Book Title: Dhyanashatakam Part 2
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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परिशिष्टम्-२२, जैनेन्द्रसिद्धांतकोशसंकलितध्यानस्वरूपम्
२८७ शुक्लध्यान व निर्विकल्पसमाधिकी एकार्थता ४ शंका-समाधान
-दे. पद्धति। १ संक्रान्ति रहते ध्यान कैसे सम्भव है। शुक्लध्यान व शुद्धात्मानुभव की एकार्थता
प्रथम शुक्लध्यानमें उपयोगकी युगपत् दो धाराएँ -दे. पद्धति।
-दे. उपयोग/II/३/१। शुद्धात्मानुभव
-दे.अनुभव।
२ योगसंक्रान्तिका कारण ।। शुक्लध्यानके बाह्यचिह्न -दे.ध्याता/५।। १ शुक्लध्यानमें श्वासोच्छ्वासका निरोध हो जाता है। ३ योगसंक्रान्ति बन्धका कारण नहीं रागादि है। २ पृथक्त्ववितर्कमें प्रतिपातीपना सम्भव है।
प्रथम शुक्लध्यानमें राग अव्यक्त है ३ एकत्ववितर्कमें प्रतिपातका विधि-निषेध।
-- दे. राग/३॥ ४ चारों शुक्लध्यानोमें अन्तर ।
केवलीको शुक्लध्यानके अस्तित्व सम्बन्धी शंकाएँ ५ शुक्लध्यानमें सम्भव भाव व लेश्या
-दे. केवली/६ । शुक्लध्यानमें संहनन सम्बन्धी नियम [१.] भेद व लक्षण
-दे. संहनन। (१.) शुक्लध्यान सामान्यका लक्षण पंचमकालमें शुक्लध्यान सम्भव नहीं स. सि./९/२८/४४५/११ शुचिगुण-योगाच्छु
-दे. धर्मध्यान/५।
क्लम्। (यथा मलद्रव्यापायात् शुचिगुणयोगाच्छुक्लं ३ शुक्लध्यानोंका स्वामित्व व फल
वस्त्रं तथा तद्गुणसाधादात्मपरिणामस्वरूपमपि शुक्लध्यानके योग्य जघन्य उत्कृष्ट ज्ञान शुक्लमिति निरुच्यते। रा.वा.) । जिसमें शुचि
-दे. ध्याता/१। गुणका सम्बन्ध है वह शुक्लध्यान है। (जैसे मैल १ पृथक्त्ववितर्कविचारका स्वामित्व
हट जानेसे वस्त्र शुचि होकर शुक्ल कहलाता है २ एकत्ववितर्कविचारका स्वामित्व
उसी तरह निर्मल गुणयुक्त आत्म परिणति ३ उपशान्तकषायमें एकत्ववितर्क कैसे
भी शुक्ल है । रा.वा.) (रा.वा./९/२८/४/६२७/
३१)। ४ सूक्ष्मक्रियाअप्रतिपाती व सूक्ष्मक्रियानिवृत्तिका स्वामित्व।
ध. १३/५,४,२६/७०/९ कुदो एदस्स सुक्कत्तं
कसायमलाभावादो। कषाय मलका अभाव होनेसे ५ स्त्रीको शुक्लध्यान सम्भव नही।
इसे शुक्लपना प्राप्त है। ६ चारों ध्यानोंका फल।
का. अ./मू./४८३ जत्थ गुणा सुविसुद्धा शुक्ल व धर्मध्यानके फलमें अन्तर
उपसम-खमणं च जत्थ कम्माणं। लेस्सावि जत्थ -दे. धर्मध्यान/३/५।
सुक्का तं सुक्कं भण्णदे झाणं ।४८३। जहाँ गुण ध्यानकी महिमा -. ध्यान/२।। अतिविशुद्ध होते हैं, जहाँ कर्मोका क्षय और उपशम
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