Book Title: Dhyanashatakam Part 2
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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परिशिष्टम्-२२, जैनेन्द्रसिद्धांतकोशसंकलितध्यानस्वरूपम्
२४१ २ यदि इसकालमें मोक्ष नहीं तो ध्यान करने से आंशिक प्रवृत्ति । क्या प्रयोजन ?
८ निरीहभावसे किया गया सभी उपयोग एक ३ पंचमकालमें भी अध्यात्म ध्यानका कथंचित् आत्मोपयोग ही है । सद्भाव व असद्भाव ।
* सविकल्पअवस्थासे निर्विकल्पावस्थामें चढनेका ४ परन्तु इस कालमें भी ध्यानका सर्वथा अभाव क्रम। नहीं है।
-दे० धर्म/६/४। ५ पंचमकालमें शुक्लध्यान नहीं पर धर्मध्यान अवश्य १.] धर्मध्यान व उसके भेदोंका सामान्य निर्देश सम्भव है ।
(१.) धर्मध्यान सामान्यका लक्षण ६ निश्चय-व्यवहार धर्मध्यान निर्देश
१. धर्मसे युक्त ध्यान * साधु व श्रावकके योग्य शुद्धोपयोग। -दे० अनुभव ।
भ. आ./मू./१७०९/१५४१ धम्मस्स लक्खणं से १ निश्चयधर्मध्यानका लक्षण ।
अजवलहुगत्तमद्दवोवसमा । उवदेसणा य सुत्ते
णिसग्गजाओ रुचीओ दे १७०६। जिससे धर्मका निश्चयधर्मध्यान योग्य ध्येय व भावनाएँ।
परिज्ञान होता है वह धर्मध्यानका लक्षण समझना -दे० ध्येय।
चाहिए। आर्जव, लघुत्व, मार्दव और उपदेश ये इसके २ व्यवहारधर्मध्यानका लक्षण ।
लक्षण हैं। (मू. आ./६७९) बाह्य व आध्यात्मिक ध्यानके लक्षण ।
स. सि./९/२८/४४५/११ धर्मो व्याख्यातः। -दे० धर्मध्यान/१।
धर्मादनपेतं धर्म्यम् । धर्मका व्याख्यान पहले कर व्यवहारध्यान योग्य अनेको ध्येय । -दे० ध्येय ।
आये हैं (उत्तम क्षमादि लक्षणवाला धर्म है) जो
धर्मसे युक्त होता है वह धर्म्य है । (स.सि./९/ सब ध्येयोंमें आत्मा प्रधान है। - दे० ध्येय ।
३६/४५०/४); (रा. वा./९/२८/३/६२७/ परमध्यानके अपर नाम ।
३०); (रा.वा./९/३६/११/६३२/११); (म.पु./ -दे० मोक्षमार्ग/२/५।
२१/१३३); (त. अनु/५४); (भा.पा./टी./७८/ ३ निश्चय ही ध्यान सार्थक है व्यवहार नही ।
२२६/१७)। ४ व्यवहारध्यान कथंचित् अज्ञान है ।
नोट- यहाँ धर्मके अनेकों लक्षणोंके लिए देखो धर्म/ ५ व्यवहारध्यान निश्चयका साधन है ।
१) उन सभी प्रकारके धर्मोसे युक्त प्रवृत्तिका नाम ६ निश्चय व व्यवहारध्यानमें साध्य साधकपनेका
धर्मध्यान है, ऐसा समझना चाहिए। इस लक्षणकी समन्वय।
सिद्धिके लिए-दे० (धर्मध्यान/४/५/२) । ७ निश्चय व व्यवहारध्यानमें 'निश्चय' शब्दकी
२. शास्त्र, स्वाध्याय व तत्वचिन्तवन
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