Book Title: Dhyanashatakam Part 2
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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ध्यानशतकम् धर्मध्यान योग्य सामग्री ।
१. मिथ्यादृष्टिको भी तो देखा जाता है । धर्मध्यान योग्य मुद्रा, आसन, क्षेत्र, पीठ व दिशा। २. प्रमत्तजनोंको ध्यान कैसे सम्भव है ।
-दे० कृति कर्म/३ । ३. कषायरहित जीवोंमें ही मानना चाहिए । धर्मध्यान योग्य काल । - दे० ध्यान/३ । धर्मध्यानमें संहनन सम्बन्धी चर्चा । धर्मध्यानकी विधि । - दे० ध्यान /३ ।
-दे० संहनन । धर्मध्यान सम्बन्धी धारणाएँ - दे० पिंडस्थ । ३ धर्मध्यान व अनुप्रेक्षादिमें अन्तर धर्मध्यानके भेद आज्ञा, अपाय आदि व बाह्य १ ध्यान, अनुप्रेक्षा, भावना व चिन्तामें अन्तर । आध्यात्मिक आदि।
२ अथवा अनुप्रेक्षादिको अपायविचयमें गर्भित आज्ञाविचय आदि १० ध्यानोके लक्षण । समझना चाहिए। संस्थानविचय धर्मध्यानका स्वरूप ।
३ ध्यान व कायोत्सर्गमें अन्तर । संस्थानविचयके पिंडस्थ आदि भेदोंका निर्देश । ४ माला जपना आदि ध्यान नहीं है । पिंडस्थ आदि ध्यान । दे० वह वह नाम । प्राणायाम, समाधि आदि ध्यान नहीं । बाह्य व आध्यात्मिकध्यानका लक्षण ।
-दे० प्राणायाम । २. धर्मध्यानमें सम्यक्त्व व भावों आदिका निर्देश ५ धर्मध्यान व शुक्लध्यानमें कथंचित् भेदाभेद । धर्मध्यानमें आवश्यक ज्ञानकी सीमा । ४ धर्मध्यानका फल पुण्य व मोक्ष तथा
- दे० ध्याता/१ । उसका समन्वय १ धर्मध्यानमें विषय परिवर्तन क्रम । १ धर्मध्यानका फल अतिशयपुण्य । २ धर्मध्यान मे सम्भव भाव व लेश्याएँ । २ धर्मध्यानका फल संवर, निर्जरा व कर्मक्षय । धर्मध्यान योग्य ध्याता ।
३ धर्मध्यानका फल मोक्ष । -दे० ध्याता/२,४ । * धर्मध्यानकी महिमा । -दे० ध्यान/२। सम्यग्दृष्टिको ही सम्भव है ।
४ एक ही धर्मध्यानसे मोहनीयका उपशम व क्षय ___ -दे० ध्याता/२,४। दोनों कैसे सम्भव है ? ३ मिथ्यादृष्टिको सम्भव नहीं ।
५ पुण्यास्रव व मोक्ष दोनों होनेका समन्वय । ४ गुणस्थानोंकी अपेक्षा स्वामित्व । ६ परपदार्थोके चिन्तवनसे कर्मक्षय कैसे सम्भव
साधु व श्रावकको निश्चय ध्यानका कथंचित् विधि, निषेध।
५ पंचमकालमें भी धर्मध्यानकी सफलता - - दे० अनुभव/५ । १ यदि ध्यानसे मोक्ष होता है तो अब क्यों नहीं ५ धर्मध्यानके स्वामित्व सम्बन्धी शंकाएँ
होता?
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