Book Title: Dhyanashatakam Part 2
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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ध्यानशतकम् निरवात दीप जैसे जरत अकंप होत ऐसे चित धोत जोत एकरूप ठयो है
अरथ विजन जोग अविचार तत जोग नाना रूप गेय छोर एकरूप छयो है 'एकतवितर्क' नाम अविचार सुख धाम करम थिरत आग पाय जैसे तयो है २ इति दूजा । विमल विग्यान कर मिथ्या तम दूर कर केवल सरूप धर जग ईस भयों है मोखके गमनकाल तोर सब अघजाल ईषत निरोध काम जोग वस ठयो है तनु काय क्रिया रहे तीजा भेद वीर कहे करम भरम सब छोरवेको थयो है सूक्षम तो होत क्रिया अनिवृत्त' नाम लीया तीजा भेद सुकर मुकर दरसयो है ३ इति तीजा । ईस सब कर्म पीस मेरु नगरा जईस ऐसे भयो थिर धीस फेर नहीं कंपना कदे हीन परे ऐसो परम सुकल भेद छेद सब क्रिया ऐही नाम याको जंपना प्रथम सुकल एक योग तथा तीनहीमे एक जोग माहे दूजा भेद लेइ ठंपना काय जोग तीजो भेद चौथ भयो जोग छेद आगम उमेद मोख महिल धरंपना ४ जैसे छदमस्थ केरो मनोयोग ध्यान कह्यो तैसे विभु केवलीके काय छोरे ध्यान ठेरे है विना मन ध्यान कह्यो पूरव प्रयोग करी जैसे कुंभकारचाक एक वेरे है पीछे ही फिरत आप ऐसे मन करे थाप मन रुक गयो तो ही ध्यानरूप लेरे है वीतराग वैन ऐन मिथ्या नहीं कहै जैन ऐसे विभु केवलिने कर्म दूर गेरे है ५
इति चौथा । अथ अनुप्रेक्षाकथन, सवईया इकतीसापाप के अपथ केरी नरकमे दुख परे सोगकी अगन जरे नाना कष्ट पायो है गर्भ के वास वसे मूत ने पुरीष रसे जम्म पाय फेर हसे जरा काल खायो है फेर ही निगोद वसे अंत विन काल फसे जगमे अभव्य लसे अंत नही आयो है
राजन ते रंक होत सुख मान देख रोत आतम अखंड जोत धोत चित ठायो है १ अथ लेश्याकथन, दोहराप्रथम भेद दो सुकलमे, तीजा परम वखान; लेश्यातीत चतुर्थ है, ए ही जिनमतवान १ अथ लिंगकथन, सवईया इकतीसापरीसहा आन परे ध्यान थकी नाही चरे गज मुनि जैसे खरे ममताकू छोरके देवमाया गीत नृत मूढता न होत चित सूखम प्रमान ग्यान धारे भ्रम तोरके दीषे जो ही नेत्रको ही सब ही विनास होही निज गुन टोही तोही कहूं कर जोरके • घर नर नार यार धन धान धाम वार आतमसे न्यार धार डार पार दोरके १
इति लिंग।
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