Book Title: Dhyanashatakam Part 2
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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परिशिष्ट-१९,
ध्यानदीपिकाचतुष्पदी
चढे इग्यारमे थान निज ज्ञानथी, थाय उपशांत जिन शुक्ल निज ध्यानथी; चरण अहक्खाय गुण पाय वसि कलनै के मरे के पडे मोहने झालने । ४ जै मरै ते टिकै आय समकितगुणे, एग अवतार सव्वट्ट सिद्धे थुणे; जे पडे ते टिके सम गच्छ पंचमे, कोय चउथे निये होइ पहिले रमे । ५ भाव पंचे हवे शुक्ल पहिलो स्मरे, च्यारस सहु कालने इकभवे दो करे; सर्वश्रुतिजाण मुनि शांत मुनि संवरी ध्यान ध्यावे तिको आत्मगुण आदरी । ६ ध्यान सवितर्कथी जीप कषायने, ध्यान एकत्वसवितर्क गुण ध्यायने; चित्त निर्मल करी ध्यान सुपृथक्त्वथी, ध्यान एकत्व ध्यावे निज सत्त्वी । ७ शुक्ल बीय पाय ध्यावे अछे क्षायकी, निरमल केवलज्ञाननी जसु वकी; एक निज आतमा त्रिगुणनी एकता, ध्यान ध्यातातणी एकता थिरता । ८ द्रव्य पर्याय एकत्वथी जे धरै, निश्चल द्रव्य एकत्वथी जे धरै;
शुक्ल एकत्वता ध्यान अभ्यासथी, पामे केवल कर्मना नाशथी । ९ श्रेणी आरोहिने क्षपक कोई मुनि, करे अपूरवपणे गुण कर्मनी; कोडी थिति घात करि महूरत थिति करे, छेदि अनंतरसभाग अंतिम वरे । १० चढे गुणश्रेणि असंख्य गुण नित वधे, कर्मदल विहचिने तास नासन धरे; दशम गुण लोभनो क्षय करी बारमे, गुण चढी कर्म घाति भणी ते तेरमे थानके केवलज्ञानने, दरसण चरण वीरज्ज अनंतने; पूर्व नवि लद्ध ते गुण चतुष्टय लही, देव सर्वज्ञ भगवान ते सुख मही । १२ जेहना नामथी कर्मबंधन गले, जन्ममरणादि विनु सिद्धसुखने मिले;
मे । ११
अगम अगोचर ज्ञानसंपद धरे, शेष अघाति चोकर्म हवे क्षय करे । १३ मास छ शेष आयुष थकां जे लहे, केवल ते समुदघात निश्चय वहे; आयुथी वेदनीकर्म जो अधिक छे, तो समुदघातने आदरी शिव गछे । १४ चउदह राजनो दंड पहिले समे, बीय कपाटमंथाण तीजे समे;
भुवन पूरे सहू आत्मपरदेशथी, समे चोथे जगव्यापक आपथी । १५ कर्मचतुष्कने सम करी केवली, ते वली संहर आत्मप्रदेशावली;
अनुक्रमे च्यारविधि चोसमे संहरे, अड समयमांहि त्रय समय नवि आदरे । १६ दुहा
कोय करे को नवि करें, समुद्धात विधि एह; ज्ञानी धर्म वदे इशो, स्यादवाद गुण गेह । १ द्रव्य क्षेत्र काल भावथी, निजरुपे सही अस्ति; पर द्रव्यादिक देवता, नास्ति सहित सहु वस्तु । २
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