Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

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Page 10
________________ (८) कर कहा कि हे महा भाग ! जो संसार की असारता और भोगों की रूप की क्षण भंगुरता नहीं समझते वही देवांगना बा स्वर्ग की वांछा करते हैं किंतु जिसे ज्ञान है वे ऐसे फंदों में नहीं पड़ते उनके अथाग रूप और तेजस्वी कांति देख कर प्रथम से ही शांत हो गया था और जब ऐसे शांति प्रिय मधुर वचन सुने तब तात और कन्या दोनों ने कहा तब हमारे क्या करना बजू स्वामी ने कन्या को दीक्षा देकर उसी धन से उसका दीक्षा महोत्सव कराया ! __ ऐसे ही अनाथी मुनि से श्रेणिक राजा ने बोध पाया और समय सुंदर जी महाराज ने जो सज्झाय वनाई है वो ही यहां पर लिख देते हैं। श्रेणिक रयबाड़ी चडयो, पेखीयो मुनिएकांतवरकांत रूप मोहियो, राय पूछे कहीने वृतांत, श्रेणिक राय हूंरे अनाथी नि ग्रंथ । तिणमें लीघोरे साधुजी को पंथ श्रे-- १ वसंत ऋतुमें जिसवक्त राजा श्रेणिक राज ग्रही नगरी के उद्यान में फिरने को गया था उस समय युवतियों के मन के मनोरथ पूर्ण करने वाला एक अतीव रूपवान् देव कुमार जैसा युवक को देख कर राजा को अत्यंत आश्चर्य हुआ कि अहो कैसा सौभाग्यवान् सुंदर कुमार है परंतु वो इतना सुंदर होने पर भी साधु क्यों हो गया है । साधु तो वह ही होता है जो सब बात से दुखी हो ! ऐसा विचार कर राजा वहां जाकर वोला कि आप कौन हैं और साधु क्यों हो गये हैं ! ऐसी युवावस्था में ऐसे वन में तो युवतियों के साथ युवक ही क्रीड़ा करने को वसंत ऋतु में आते हैं __ मुनि ने कहा- मैं अनाथ हूं मेरा कोई रक्षक नहीं है इस लिये साधु हुअा हूं। राजा-यदि आप को ऐसा ही दुःख से साधु होना पड़ा है तो मैं आप का नाथ होकर आश्रय देने को तैयार हूं। मुनि-आप स्वयं अनाथ हैं, मेरे नाथ कैंसे होंगे। राजा को गुस्सा आया कि वो मुझे अनाथ कहकर क्यों अपमान करता . है ? मैं कैसे अनाथ हूं? और प्रकट वोला कि-हे मुने! साधुको ऐसा उचित नहीं

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