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सब मन वचन काया कर मिच्छामि दुक्कडं ॥ ___ बारहवें अतिथिसविभाग व्रतके पांच अतिचार ॥ " सच्चित्ते निक्खिव
णे." सचित्तवस्तुके संघट्टेवाला अकल्पनीय अहार पानी साधु साध्वीको दिया । देनेकी इच्छासे सदोष वस्तुको निर्दोष कही । देनेकी इच्छासे पराई वस्तुको अपनी कही । न देनेकी इच्छासे निर्दोष वस्तुको सर्दोष कही । न देनेकी इच्छासे अपनी वस्तुको पराई कही । गोचरीके वक्त इधर उधर होगया। गौचरीका समय टाला . बेवक्त साधु महाराजको प्रार्थना की । आये हुए गुणवानकी भक्ति न की । शक्ति के होते हुए स्वामी वात्सल्य न किया । अन्य किसी धर्मक्षेत्र को पड़ता देख मदद न की । दीन दुःखीकी अनुकंपा न की। इत्यादि बारहवें अतिथि संविभाग प्रत संबंधी जो कोई अतिचार पक्ष दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो बह सव मन वचन काया कर मिच्छामि दुक्कई ॥
संलेषणा के पांच अतिचार ॥ " इह लोए परलोए०" इहलोगासंसप्पप्रोगे । परलोगासंसप्पओगे । जीवियासंसप्पओगे। मरणासंसप्पनोगे । काम भोगासंसप्पओगे । धर्म के प्रभाव से इस लोक संबंधी राजऋद्धि भोगादिकी वांछा की। परलोक में देव देवेंद्र चक्रवर्ती आदि पदवीकी इच्छा की । सुखी अवस्था मे जीने की इच्छा की । दुःख खाने पर मरने की बांछा की । काम भोग की बांछा की । इत्यादि संलेषणा व्रत संबंधी जो कोई अतिचार पक्ष दिवस में सूक्ष्म या बादर जानने अमानते लगा हो वह सब मन नचन काया कर मिच्छामि दुकाडं ॥ . तपाचारके बारह भेद छ बाह्य छ अभ्यंतर । " अणसणमुणोअरिया." अनशन शक्ति के होते हुए पर्वतिथिको उपवास आदि तप न कियाऊनोदरी दो चार ग्रास कम न खाये । वृत्तिसंक्षेप-द्रव्य-खाने की वस्तुओं का संक्षेप न किया। रस विषय त्याग न किया । कायक्लेश-लोच आदि कष्ट न किया। संलीनता अंगोपांगका संकोच न किया, । पचखाण तोड़ा। भोजन करने समय एकासणा आंबिलप्रमुख में चौकी, पटड़ा, अखला आदि हिलता ठीक न किया। पच्चक्खान पारना भूलाया। बेठते नवकार न पढा। उठते पच्चखाण न किया निवि आंबिल उपवास आदि तपमें कच्चा पानी पिया । वमन हुआ।