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इत्यादि ब्राह्य तप संबंधी जो कोई अतिचार पक्ष दिवसमें सूक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन वचन काया कर मिच्छामि दुक्कडं ।
अभ्यंतर तप "पाय छित्त विणो ० शुद्धान्तः करण पूर्वक गुरु महाराज से आलोचना न ली । गुरु की दी हुई आलोचना संपूर्ण न की। देव गुरु संघ साधर्मी का विनय न किया । बाल वृद्ध ग्लान तपस्वी आदि की वैय्यावच्च न की । वाचना, पृच्छ ना, पगवर्तना, अनुप्रेक्षा धर्मकथा लक्षण पांच प्रकार का स्वाध्याय न किया । धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान ध्याया नहीं, आर्तध्यान रौद्रध्यान ध्याया। दुःख क्षय कर्म क्षय निमित्त दश वीस लोगस्सका काउसग्ग न किया । इत्यादि अभ्यंतर तप संबंधी जो कोई अतिचार पक्ष दिवस में सूक्ष्म या वादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन वचन काया कर मिच्छामि दुक्कडं ॥ वीर्याचार के तीन अतिचार पढते, गुणते, विनय, वैय्यावच्च, देवपूजा, सामायिक, पौषध,दान शील तप, भावनादिक धर्मकृत्य में मन, वचन, काया का वल, वीर्य, पराक्रम फोरा नहीं, विधि पूर्वक पंचांग खमासमण न दिया, द्वादशावर्त बंदनका विधि भली प्रकार न किया, अन्य चित्त निरादर से बैठा देव बंदन प्रतिक्रमण में जल्दी की । इत्यादि वीर्याचार संबंधी जो कोई पक्ष अतिचार पक्ष दिवस में सूक्ष्म या वादर जानते अजानते लगा हो वह सव मन वचन काया कर मिच्छामि दुक्कडं ॥
नाणइ अठ्ठ पदवय, समसलेहण पन्चर कम्मेसु ॥
बारस तब विरिअ तिगं, चब्बीस सय अइयारा॥ “पडि सिद्धाणं करणे ०" प्रतिषेध-अभक्ष्य अनंतकाय बहुवीज भक्षण महारंभ परिग्रहादि किया। देव पूजन आदि षट कर्म सामायिकादि छै आवश्यक विनयादक अरिहंत की भक्ति प्रमुख करणीय कार्य किये नहीं । जीव अजीवा दिक सूक्ष्म विचार की सद्दहणा न की । अपनी कुमति से उत्सूत्र प्ररूपणा की । तथा प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य रात अरात, परपरिवाद, माया, मृषावाद, मिथ्यात्वशल्य, यह अठारह पापस्थान किये कराये अनुमोदे। दिन कृत्य प्रलिक्रमण विनय वैयावत्य न किया और भी जो कुछ बीतरागकी