Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

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Page 73
________________ (६६) . मायिक में संकल्प विकल्प किया। चित्त स्थिर म रखा । सावध बचन बोला प्रमार्जन किये बिना शरीर हलाया, इधर उधर किया। शक्तिके होते हुए सामायिक न किया। सामायिक में खुले मुंह बोला । नींद ली। विकथा की । घर सम्बन्धी विचार किया । दीपक या बिजली का प्रकाश शरीरपर पड़ा। सचित्त वस्तुका संघट्टा हुआ । स्त्री नियंच आदिका निरंतर परंपर संघट्टा हुआ । मुहपत्ति संघट्टी । सामायिक अधुरा पारा । विना पारे ऊठा । इत्यादि नवमे सामायिक पतसंबंधी जो कोई अतिचार पक्ष दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन वचन काया कर मिच्छामि दुक्कडं ॥ दशमे देशावकाशिक व्रतके पांच अतिचार ॥ " प्राणवणे पेसवणे." आणवणप्पओगे, पेसवणप्पओगे, सहाणुवाई, रूवाणुवाई, वहिया पुग्गल पखेवे, नियमित भूमि में वाहिर से स्वतु मंगवाई । अपने पाससे अन्यत्र भिजवाई । खुखारा आदि शब्द करके, रूप दिखाके, या कंकर आदि फेंककर भपना होना मालूम किया । इत्यादि दशमें देशावमाशिक ब्रत संबंधी जो कोइ अतिचार पक्ष दिवसमें सूक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन वचन काया कर मिच्छामि दुक्कडं ॥ अग्यारहवें पौषधोपवास ब्रतके पांच अतिचार ॥ " संथारुच्चार विहि." अप्पडिलाहअ दुप्पाडलेहिअ सिजा संथारए । अप्पडिलेहिय दुप्पाडलेहिय उच्चार पासवरा भूमि । पौषध लेकर सोनकी जगह विना पूंजे प्रमार्जे सोया। स्थंडिल श्रादिकी भूमी भली प्रकार शोधी नही । लघु नीति वडी नीति करने या परठने समय “ अणुजाणह जस्सुग्गह" न कहा । परठे बाद तीन वार वोसिरे वोसिरे बोसिरे न कहा । जिनमंदिर और उपाश्रयमें प्रवेश करते हुए निसिही और बाहिर निकलते प्रावस्सही तीन वार न कही । वस्त्र आदि उपधिकी पडिलेहणा न की । पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय का संघट्टा हुआ । संथारा पोरिसी पढ़नी भुलाई । विना संथारे नमीनपर सोया । पोरिसीमें नींद ली। पारना आदिकी चिंता की । सम. यसर देववंदन न किया। प्रतिक्रमण न किया। पौषध देरीसे लिया और जन्दी पारा । पर्व तिथिको पोसह न लिया, इत्यादि ग्यारहवें पौषह व्रत संबंधी जो कोई अतिचार पक्ष दिवसमें सूक्ष्म या पादर जानते अजानते लगा हो वह

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