Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

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Page 71
________________ (६७) .......................................... मिच्छामि दुक्कडं ॥ . छ8 दिक्परिमाणवत के पांच अतिचार ॥ " गमणस्सउ परिमाणे" ऊर्ध्वदिशि, अधोदिशि, तिर्यगांदशि जाने आने के नियमित प्रमाण उपरान्त भूल से गया । नियम तोड़ा प्रमाण उपरांत सांसारिक कार्य के लिये अन्य देश से वस्तु मंगवाई। अपने पास से वहां भेजी। नौका जहाजादि द्वारा व्यापार किया वर्षाकाल में एक ग्राम से दूसरे ग्राम में गया। एक दिशा के प्रमाण को कम करके दूसरी दिशा में अधिक गया । इत्यादि छठे दिक्परिमा ण व्रतसम्बंधी जो कोई अतिचार पक्ष दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते अ. जानते लगा हो वह सब मन बचन कायाकर मिच्छामि दुक्कडं॥ सातमें भोगोपभोग व्रत के भोजन आश्री पांच और कर्म आश्री पंदरां अतिचार ॥ " सञ्चिते पडिबध्धे" सचित्त खानपानकी वस्तु नियम से अधिक अंगीकार की। सचित्त से मिली हुई वस्तु खाई । तुच्छ औषधी का भक्ष. ण किया । अपक्व आहार दुपक्व आहार किया । कोमल इमली, बॅट, मुढे, फलियां आदि वस्तु खाई। सचित्त १ दब्ब २ विगई ३ वाणह ४ तंवोल ५ वत्थं ६ कुसुमेसु ७ । वाहण ८ सयण ६ विलेवण १० बंभ ११ दिसि १२ न्हाण १३ भत्तेसु १४ ॥१॥ ___यह चौदह नियम लिये नहीं । लेकर भुलाये । बड़, पीपल, पिलखण, कढुंवर, गूलर, यह पांच फल मदिरा, मांस शहद, मक्खन यह चार महा विगई, वरफ, ओले, कच्ची मिट्टी, रात्री भोजन, बहुबीजाफल, अचार घालबड़े, द्विदल, बैंगण, तुच्छफल, अजानाफल, चलितरस अनंतकाय, यह बाईस अभक्षय, सूरन, जिमीकंद, कच्ची हलदी, सताबरी, कच्चानरकचूर, अदरक, कुवारपाठां, थोर गिलोय, लसन गाजर, गहा-प्याज, गोंगलु कोमल फल फूल पत्र, थेगी हरा मोत्था, अमृत वेल, मूली, नीम की गिलोय पदबहेड़ा, आलुक चालु, रतालु, पिंडालु आदि अनंतकाय का भक्षण किया दिवस अस्त होते हुये भोजन किया। सूर्योदय से पहिले भोजन किया तथा कर्मतः पंद्रह कर्मादान इंगालकम्मे, साडिकम्मे, भाडिकम्मे, फोडीकम्मे यह पांच कर्म । दंतवाणिज्ज, लाख वाणिज्ज, केस वाणिज्ज, बिसवाणिज्ज यह पांच बाणिज्ज, जंत पिल्लण कम्म, निल्लछन कम्म

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