Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

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Page 70
________________ (६६) अथवा विना आज्ञा अपने काम में ली । चोरी की वस्तु ली । चोर को सहा. यता दी ! राज्य विरुद्ध कर्म किया। अच्छी, बुरी, सजीव, निर्जीव, नई, पुरानी बस्तु का भेल संभेल किया । जकात की चोरी की । लेते देते तराजू की डंडी चढाई अथवा देते हुए कमती दिया लेते हुए अधिक लिया रिशवत खाई विश्वासघात किया ठगी की । हिसाब किताव में किसी को धोखा दिया। माता, पिता, पुत्र, मित्र, स्त्री आदिकों के साथ ठगी कर किसी को दिया अथवा पूंजी अलाहदा रखी । अमानत रखी हुई वस्तु से इनकार किया किसी को हिसाब किताब में ठगा । पडी हुई चीज उठाई । इत्यादि स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत सम्बन्धी जो कोई अतिचार पक्ष दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन वचन कायाकर मिच्छामि दुक्कडं ।। __ चोथे स्वदारासंतोष परस्त्रीगमन विरमणव्रत के पांच अतिचार ॥ " अप्प रिगहया इत्तर०" परस्त्रीगमन किया। अविवाहिता कुमारी, विधवा वेश्यादि क से गमन किया । अनंगक्रीडा की । काम आदिकी विशेष जाग्रती की अभिलाषा से सराग वचन कहा । अष्टमी चौदश आदि पर्व तिथि का नियम तोड़ा स्त्री के अंगोपांग देखे. तीव्र आभिलाषा की। कुविकल्प चिंतवन किया पराये माते जोड़े। गुड्डे गुड्डियों का विवाह किया। करे वा कराया। अतिक्रम व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार स्वम स्वमांतर हुआ । कुस्वप्न आया स्त्री नट, विट, भांड, वेश्यादिक से हास्य किया । स्वस्त्री में संतोष न किया । इत्यादिक स्वदारा संतोष परस्त्रीगमन विरमण ब्रत सम्बन्धी जो कोई अतिचार पक्ष दि. वस में सूक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन बचन कायाकर मिच्छामि दुक्कडं। ____ पंचमे स्थूल परिग्रह परिमाणवत के पांच अतिचार ॥ “ धण धन्न खित्त वत्थू० " धन धान्य, क्षेत्र, वस्तु, सोना, चांदी, बर्तन आदि द्विपद दास दासी नौकर, चतुष्पद गौ बैल घोड़ादि,इन नव प्रकार के परिग्रह का नियम नइ. लिया, लेकर बढाया अथवा अधिक देखकर मूर्खाबश माता पिता पुत्र स्त्री के न नाम किया । परिग्रह का प्रमाण किया नहीं करके भूलाया याद न किया. इत्यादि स्थूल परिग्रह परिमाण ब्रत संबंधी जो कोई अतिचार पक्ष दिक्स मे सूक्ष्म या बाद जानते अजानते लगा हो वह सब मन वचन काया कर

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