Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

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Page 68
________________ (६४) " संका कंखा विगिच्छा" शंका-श्रीअरिहंत प्रभु के बल. अतिशय ज्ञान लक्ष्मी गांभीर्यादिगुण शाश्वता प्रतिमा चारित्रवान के चारित्र में तथा जिनेश्वर देव के वचन में संदेह किया । आकांक्षा-ब्रह्मा, विष्णु, महेश, क्षेत्रपाल, गरुड, गूगा, दिपाल, गोत्रदेवता, नवग्रह पूजा गणेश, हनुमान, सुग्रीव, वाली, माता, मसानी, आदिक-तथा देश नगर ग्राम गोत्र के जुदे जुहे देवा दिकों का प्रभाव देखकर शरीर में रोगातंक कष्टादि के आने पर इस लोक पर लोक के लिये पूजा मानता की । बौद्ध सांख्यादिक संन्यासी, भगत लिंगिये, जोगी, फकीर पीर इत्यादि अन्य दर्शनियों के मंत्र यंत्र चमत्कार को देख कर बिना परमार्थ जाने मोहित हुआ। कुशास्त्र पढ़ा । सुना, श्राद्ध संवत्सरी, होली, राखडापूनम-राखी, अजा एकम, प्रेत दूज, गौरीतीज, गणेश चौथ, नाग पंचमी, स्कंदषष्ठी, झीलणा छठ उभछठ, सील सत्तमी, दुर्गा अष्टमी, राम नौमी, विजिया दशमी, व्रत एकादशी, वत्सद्वादशी, धन तेरस अनंत चौदस, शिव रात्रि, कालि चौदस, अमावास्या, आदित्यवार उत्तरायण योग भोगादि किये कराये करते को भला माना पीपल में पानी डाला डलवाया कुआ तलाव नदी द्रह बावड़ी समुद्र कुंड ऊपर पुण्य निमित्त स्नान तथा दान किया कराया अनुमोदन किया ग्रहण शनिश्चर माघमास नव रात्रिका प्रत किया अज्ञानियों के माने हुए व्रतादि किये कराये वितिगिच्छा-धर्मसंबंधी फल में संदेह किया। जिन वीतराग अरिहंत भगवान धर्म के आगार विश्वोपकारक सागर मोक्ष मार्ग दातार इत्यादि गुण युक्त जानकर पूजा न की इसलोक परलोक संबंधी भोग वाञ्छा के लिये पूजा की रोग आतंक कष्ट के आने पर क्षीण बचन बोला। मानता मानी महात्मा महा सती के आहार पानी आदि की निंदा की मिथ्या दृष्टि की पूजा की पूजा प्रभावना देख कर प्रशंसा की प्रीति की। दाक्षिण्यता से उसका धर्म माना । मिथ्यात्व को धर्म कहा । इत्यादि श्रीसम्यक्त्वव्रत संबंधी जोकोई अतिचारपक्ष दिवसमें सूक्ष्मया वादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन वचन काया कर मिच्छामिदुक्कडं ॥ पहिले स्थूल प्राणातिपात विरमण ब्रत के पांच अतिचार " वह बंधछविच्छेए " द्विपद चतुष्पद आदि जीव को क्रोध वश ताडन किया, घाव लगाया, जकड कर बांधा अधिक बोझ लादा, निर्लाछन कर्म

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