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(६१)
॥अथ पाक्षिक अतिचार ॥
" नाणांमि दसणंमि अ, चरणमि तवंमि तहय बिरियमि ।
श्रायरणं आयारो, इस ऐसो पंचहा भाणिभो ॥१॥" ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार, वीर्याचार, इन पांचों प्राचारों में जो कोई अतिचार पक्ष दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन वचन काया कर मिच्छामि दुक्कडं ॥ - तत्र ज्ञानाचारे आठ अतिचार.काले विणए बहुमाणे, उवहाणे तहय निन्हवणे । वंजण अत्य तदुभए, अट्टविहो नाण मायारो॥२॥
ज्ञान नियमित वक्त में पढ़ा नहीं । अकाल वक्त में पढा । विनय रहित, बहुमान रहित, योगोपधान रहित पढा । ज्ञान जिससे पढा उससे अतिरिक को गुरु माना या कहा । देववंदन, गुरुवंदन करते हुए, तथा प्रतिक्रमण, सझाय पढते अशुद्ध अक्षर कहा । लगमात्र न्यूनाधिक कहा । सूत्र असत्य कहा अर्थ अशुद्ध किया। अथवा, सूत्र, अर्थ दोनों असत्य कहे । पढकर भूला । असभाई के समय में थविरावली, प्रतिक्रमण, उपदेश माला आदि सिद्धांत पढा । अपवित्र स्थान में पढा या विना साफ किये घृणित भूमीपर रखा ज्ञान के उपकरण तखती, पोथी, ठवणी, कवली, माला, पुस्तक रखनेकी रील, कागज, कलम, दवात आदिके पैर लगा, थूक लगा अथवा थूक से अक्षर मिटाया, ज्ञान के उपकरण को मस्तक के नीचे रखा, अथवा पास में लिए हुए आहार निहार किया, ज्ञान द्रव्य भक्षण करने वाले की उपेक्षा की, ज्ञान द्रव्य की सार संभाल न की, उलटा नुकसान किया ज्ञानवंत के ऊपर देष किया, ईर्षा की, तथा अवज्ञा आशातना की किसी को पढने गुणने में विघ्न डाला, अपने जानपने का मान किया । मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान मन-पर्यवज्ञान और फेवल ज्ञान इन पांचों ज्ञानों में श्रद्धा न की । गूंगे तोतले की हांसी की। ज्ञान में कुतर्क की, ज्ञान की विपरीत प्ररूपणा की । इत्यादि झानाचार संबंधी जो कोई अनाचार पक्ष दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते अजानने खमा हो वह सब मन वचन काया कर मिच्छामिकडं ॥ .